by Nishant karpatne
तीर धनुष तलवार हार कर जब बैठी तरुणाई थी ..
कलम जगी विध्वंस राग से गूँज उठी अमराई थी ..
ऐसे में एक सैनिक आया , अग्निलेख का शस्त्र दिखाया ..
भारत का इतिहास रचा , नव मौलिक भाषा मंत्र सिखाया ..
राष्ट्रचेतना से दीपित, एक कवि ने थी फिर हाँक लगायी ..
आबहु सब मिलि रोबहु भारत भाई , हा हा भारत दुर्दशा देखी न जाई ..
छंद प्रेम था , राष्ट्र प्रेम था , संस्कृति से गहरा लगाव था ..
अपनी माटी के रस पूरित , कथा-कहानियों का बहाव था ..
भारत की भारती समादृत,जयद्रथ -वध का राग सुनाया ..
यशोधरा के आँसू विगलित बुद्ध कथा का स्वर सरसाया ..
रामकथा के घने वनों से एक सिसकती नारी को चुन ..
बना दिया साकेत , सुनहरे अक्षर में रोदन की धुन गुन ..
राष्ट्र समर्पित राष्ट्र पुरुष ने आजादी की अलख जगा दी ..
देश ने तब मैथिली शरण को प्यारे दद्दा की पुकार दी ..
आज उसी चेतन पुरखे को , याद करें हम सब मिलि आई ..
भारतेंदु के स्वर में बोलें , भारत-दुर्दशा देखी न जाई .. . . . . . . .
शत शत नमन