
मुख्यमंत्री श्री नीतीष कुमार ने इंटरनेट के माध्यम से उपलब्ध स्ट्रीमिंग सर्विसेज पर सेंसरषिप लागू करने के लिये प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी से पत्र के माध्यम से अनुरोध
लागू करने के संबंध में
प्रधानमंत्री को लिखा पत्र
पटना, 21 जून 2020:- मुख्यमंत्री श्री नीतीष कुमार ने इंटरनेट के
माध्यम से उपलब्ध स्ट्रीमिंग सर्विसेज पर सेंसरषिप लागू करने के लिये
प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी से पत्र के माध्यम से अनुरोध किया है।
प्रधानमंत्री को लिखे गये पत्र में मुख्यमंत्री ने कहा है कि देष में
महिलाओं एवं बच्चों के साथ घटित दुष्कर्म एवं आपराधिक
घटनाओं से पूरे देष का जनमानस उद्वेलित होता है। इस तरह की
घटनाएँ प्रायः सभी राज्यों में घटित हो रही हैं जो अत्यंत दुख
एवं चिंता का विषय है।
मुख्यमंत्री ने इस संबंध में प्रधानमंत्री को भेजे गये अपने
पूर्व पत्र दिनांक 11.12.2019 का भी हवाला दिया है, जिसमें
मुख्यमंत्री द्वारा इन्टरनेट पर उपलब्ध ऐसी पोर्न साइट्स ;च्वतद.ैपजमेद्ध तथा
अनुचित सामग्री (प्दंचचतवचतपंजम ब्वदजमदज) पर प्रतिबंध लगाने हेतु समुचित
कार्रवाई करने के संबंध में अनुरोध किया गया था। मुख्यमंत्री ने
पुनः इसी विषय से संबंधित एक महत्वपूर्ण बिंदु की ओर प्रधानमंत्री
का ध्यान आकृष्ट किया है। उन्होंने पत्र में लिखा है कि वर्तमान
में कई सेवा प्रदाता अपनी-अपनी स्ट्रीमिंग सर्विसेज के माध्यम से
उपभोक्ताओं को विभिन्न कार्यक्रम, फिल्में एवं सीरियल्स
(धारावाहिक) दिखा रहे हैं। परंतु स्ट्रीमिंग सर्विसेज पर सेंसरषिप
लागू न होने के कारण अत्यधिक आपराधिक मार-धाड़ या सेक्स के
खुले प्रदर्षन पर आधारित फिल्में और धारावाहिक इन चैनलों पर
दिखाये जाते हैं। ये कार्यक्रम किसी अन्य माध्यम से उपलब्ध नहीं होते
हैं तथा केवल इन्हीं स्ट्रीमिंग सर्विसेज के माध्यम से
उपभोक्ताओं को सीधे उपलब्ध होते हैं। साथ ही स्ट्रीमिंग
सर्विसेज पर जो कार्यक्रम आते हैं उनपर नियमों और कानूनों की
अस्पष्टता होने के कारण न तो सेंसरषिप लागू होती है और न ही
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किसी प्रकार के विज्ञापन आते हैं। इसके अतिरिक्त जब भी उपभोक्ता
चाहे तब ये कार्यक्रम देख सकता है। इस तरह से ये सेवाएँ एक आॅनलाईन
वीडियो लाईब्रेरी के रूप में कार्य करती हैं। इन सेवाओं की दर
भी डी.टी.एच. (क्पतमबज ज्व भ्वउम) तथा केबुल सेवाओं से काफी कम
रहती है। उपरोक्त कारणों से ये सेवाएँ उपभोक्ताओं के बीच
काफी प्रचलित हैं।
मुख्यमंत्री ने पत्र में उल्लेख किया है कि स्ट्रीमिंग सर्विसेज की
लोगों तक बिना सेंसर के पहुँच (न्दबमदेवतमक ।बबमेे) के कारण बहुत से
लोग अष्लील, हिंसक एवं अनुचित कन्टेन्ट ;ब्वदजमदजद्ध देख रहे हैं जो
अवांछनीय है। इन कार्यक्रमों को देखने वाले बहुत सारे लोगों
के मस्तिष्क को इस तरह की सामग्री गंभीर रूप से दुष्प्रभावित करती है।
इसके अतिरिक्त ऐसी सामग्री के दीर्घकालीन उपयोग से कुछ लोगों
की मानसिकता नकारात्मक रूप से प्रभावित हो रही है जिससे अनेक सामाजिक
समस्याएँ उत्पन्न हो रही हैं तथा विषेष रूप से महिलाओं एवं
बच्चों के प्रति अपराधों में वृद्धि हो रही है।
मुख्यमंत्री ने पत्र के माध्यम से कहा है कि इस तरह की अनुचित सामग्री
की असीमित उपलब्धता उचित नहीं है तथा महिलाओं एवं बच्चों के
विरूद्ध हो रहे ऐसे अपराधों के निवारण हेतु प्रभावी कार्रवाई किया
जाना नितांत आवष्यक है। उल्लेखनीय है कि सिनेमैटोग्राफ
एक्ट-1952 की धारा 3 के अनुसार फिल्मों के सार्वजनिक प्रदर्षन
(च्नइसपब म्गीपइपजपवद) के प्रमाणीकरण (ब्मतजपपिबंजपवद) के लिये ब्मदजतंस ठवंतक व्
िथ्पसउ ब्मतजपपिबंजपवद ;ब्ठथ्ब्द्ध के गठन का प्रावधान है परंतु इस अधिनियम में
च्नइसपब म्गीपइपजपवद को परिभाषित नहीं किया गया है जिसके कारण यह स्पष्ट
नहीं है कि प्रमाणीकरण (ब्मतजपपिबंजपवद) की आवष्यकता केवल सिनेमा
हाॅल में दिखाये जाने वाले कार्यक्रमों के लिये है अथवा अपने
निजी घर में भी देखे जाने वाले कार्यक्रम च्नइसपब म्गीपइपजपवद की
परिभाषा में आते हैं।
मुख्यमंत्री ने अपने विस्तृत पत्र में लिखा है कि नियम एवं अधिनियम
में अस्पष्टता के कारण आज समाज में स्ट्रीमिंग सर्विसेज के माध्यम से
दिखाये जाने वाले अष्लील एवं हिंसक कार्यक्रमों के नकारात्मक
प्रभावों के कारण अपराधों में वृद्धि हो रही है। अतः ऐसे
कार्यक्रमों के निर्माण एवं प्रसारण को अपराध मानते हुये इन पर
अंकुष लगाने की आवष्यकता है। साथ ही विभिन्न हितधारकों
यथा- अभिभावकों, शैक्षिक संस्थानों एवं गैर-सरकारी
संगठनों के सहयोग से व्यापक जागरूकता अभियान चलाना भी आवष्यक
है।
मुख्यमंत्री ने प्रधानमंत्री से अनुरोध किया है कि इस गंभीर
विषय पर तत्काल विचार करते हुये स्ट्रीमिंग सर्विसेज के माध्यम से प्रसारित
हो रहे कार्यक्रमों को सिनेमैटोग्राफ एक्ट के अंतर्गत प्रमाणीकरण
(ब्मतजपपिबंजपवद) की परिधि में लाने हेतु समुचित कार्रवाई करने की कृपा
की जाय। इसके अतिरिक्त ऐसे अष्लील एवं हिंसक कार्यक्रमों के निर्माण
एवं प्रसारण को अपराध की श्रेणी में लाना चाहिये ताकि संबंधित
व्यक्तियों पर कानूनी कार्रवाई की जा सके।