कलाकारों के दर्द को बयां कर गया नाटक “बाबूजी”

बिहार आर्ट थिएटर द्वारा आयोजित ‘107वीं अनिल कुमार मुखर्जी जयंती’ सह ‘32वां पटना थिएटर फेस्टिवल-2023’ सात दिवसीय नाट्य समारोह के अंतर्गत आज दिनांक 19 जनवरी 2023 को संध्या 6:30 बजे, कालिदास रंगालय, पटना में नाट्य संस्था “ हज्जु म्यूजिकल थिएटर ” पटना आयोजित नाटक ” बाबूजी “

//नाटक बाबूजी का कथासार//
ललन सिंह यानी (बाबूजी) शराबी ,कबाबी, दबंग , जिद्दी होते हुए भी असाधारण है। व्यक्तिगत नैतिकता में विश्वास रखने वाले है। चरित्र इन्ही पहलुओं में से समाजिक संदेश को तलाश करता नाटक बाबूजी
कलाकार अपने मन के राजा होते हैं । बाबूजी भी ऐसे ही कलाकार थे। बाबूजी शराबी,कबाबी,दबंग जिद्दी होते हुए भी मानवीय संवेदना वाले कलाकार थे। कलाकार का दृष्टिकोण एक आम आदमी के दृष्टिकोण से श्रेष्ठ होता है जिसे समझाया नाटक बाबूजी ने। एचएमटी संस्था द्वारा बाबूजी नाटक के मंचन मूलतः नौटंकी के कलाकार की कहानी है जो समाज से लड़ झगड़ कर कला की साधना करता हैं। अपने साथी के समझाने के बावजूद समाज से अपमानित लड़की से विवाह करते हैं। दिनभर कला के लिए और कला दिन भर बाबूजी के लिए काल बन कर आती हैं। पहले पत्नी फिर बच्चे उसके विरोधी होते हैं। कलह से ऊबकर बाबूजी अपनी संपत्ति बेचकर अपनी नौटकी कम्पनी खोल लेते हैं। बाबूजी के लड़की की शादी एक बड़े घराने में तय होती है। जिसमें बाबूजी की कम्पनी आती हैं। लड़के वाले नर्तकी से बदतमीजी करते हैं। बाबूजी उलझ पड़ते हैं, फिर लाठी से बाबूजी पर हमला होता है और बाबूजी इस संसार को छोड़ कर चले जाते हैं।
बाल कलाकारों ने मन मोहा

स्लम एरिया के बच्चों के साथ काम करने वाले चर्चित नाट्य निर्देशक सुरेश कुमार हज्जु ने अपने निर्देशन कौशल से इन प्रभिताओं को तराशा। खासकर बाबूजी का किरदार निभा रहे कुमार स्पर्श ने अपने अभिनय कौशल से चकित कर दिया। कौशल्या के रूप में अन्वेषा सम्यक ने अपने चरित्र के साथ पूरी न्याय करती दिखी। रेखा सिंह ने सुरसती की भूमिका में जान फूंक दी। उन्होंने अपनी गायकी से दर्शकों में मन पटल पर उम्दा छाप छोड़ी। अन्य कलाकारों में बड़े बेटे के रूप में गोपी कुमार जचे हैं। धनपत के किरदार में राहुल रंजन दर्शकों का मनोरंजन करते आ रहे थे। लच्छु प्रिंस कुमार और कालीदिन चंदन उगना ने दर्शकों का खूब मनोरंजन किया |

संगीत परिकल्पना ने जान फूंकी
कला पुरुस्कार से सम्मानित वरिष्ठ कलाकार राजू मिश्रा की संगीत परिकल्पना ने नाटक को चार चांद लगा दिया। नौटंकी के बहरेतबील बोल पर दर्शक झूमते रहे। तबला और नगाड़ा नाटक को गति दे रही थीं। हारमोनियम पर रोहित चंद्रा ने अच्छा कार्य किया। नाटक के प्रकाश परिकल्पना ने भी लोगों का ध्यान खींचा।

मंच पर
बाबूजी : कुमार स्पर्श
कौशल्या : अन्वेषा सम्यक
सुरसती : रेखा सिंह
बड़कऊ : गोपी कुमार , हर्ष कुमार , साजन कुमार
छोटकू : सुदर्शन शर्मा , बादल कुमार
हर्षित
बसंती : प्रियंका कुमारी , नेहा कुमारी
जया कुमारी
कालीदीन : चंदन उगना
लच्छू : प्रिंस राज
धनपत : राहुल रंजन
जगेशर : ज़ाहिद मल्लिक
दरोगा : नीतीश कुमार सोनी
कांस्टेबल : विवेक कुमार
फौरेबी : राहुल कुमार
काका : सुधीर कुमार
आदमी : आयुष कुमार
रामभजन सिंह : अर्जुन कुमार
ग्रामीण : आशु शुक्ला , सुजाता
कुमारी , नेहा कुमारी अर्जुन कुमार ,साजन कुमार , बादल कुमार , हर्ष कुमार , अनिरुद्ध कुमार, नीरज कुमार, आदित्य प्रताप ओझा , सिमरन गुप्ता , अंकित कुमार, रजनीश कुमार इत्यादि

मंच परे

संगीत सयोजन एवं हारमोनियम : रोहित
चंद्रा
ढोलक – गौरव पांडेय
नगाड़ा : प्रेम पंडित
खंजरी / झाल : राकेश चौधरी
गायन मंडली : राहुल कुमार राज, सिमरन कुमारी,रजनी राय, फ़िज़ा निगार

मंच परिकल्पना : सुनील कुमार

वेश-भूषा : जितेन्द्र कुमार जीतू , ब्रजेश शर्मा , राहुल कुमार राज
वस्त्र विन्यास – शब्दा हज्जु, राहुल कुमार राज , गोपी कुमार

संगीत परिकल्पना : राजू मिश्रा

प्रकाश परिकल्पना- राहुल कुमार रवि
सह निर्देशन – राहुल कुमार राज

परिकल्पना एवं निर्देशन – सुरेश कुमार हज्जु

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रंगमंचीय जुनून में समर्पित हज्ज़ू


365 दिन सुबह शाम प्रेमचंद रंगशाला में नाटक का अभ्यास कराने वाले सुरेश कुमार हज्जू ने अपने जुनून से कई नए नए अभिनेताओं को हर साल मंच प्रदान करते आए हैं। उनके तराशे कई अभिनेता आज मुंबई, दिल्ली ,पटना में कार्य कर हैं। स्लम एरिया के बच्चों के जीवन को सुधारने में कला एक महत्पूर्ण माध्यम हैं। इसका जीता जागता उदाहरण सुरेश कुमार हज्जू हैं। जिन्होंने कई बच्चों को स्लम एरिया से हर साल कार्यशाला के माध्यम से तलाशा

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