जनगायक गदर की श्रद्धांजलि सभा का आयोजन

पटना, 10 अगस्त। प्रख्यात जनगायक और क्रांतिकारी सांस्कृतिकर्मी गदर की श्रद्धांजलि सभा का आयोजन मैत्री- शांति भवन में अभियान सांस्कृतिक मंच, पटना द्वारा आयोजित किया गया।श्रद्धांजलि सभा में पटना के रंगकर्मी, साहित्यकार, सामाजिक कार्यकर्ता आदि मौजूद थे। सर्वप्रथम गदर की तस्वीर पर माल्यार्पण किया गया।प्रारंभ में युवा रंगकर्मी जयप्रकाश ने गदर के जीवन पर प्रकाश डाला।

संस्कृतिकर्मी अनीश अंकुर ने श्रद्धांजलि सभा गदर के साथ के अपने अनुभव साझा करते हुए कहा ” जब 6 अप्रैल 1997 को गोली लगी उसके ठीक कुछ दिन पहले सीवान में चंद्रशेखर की हत्या हुई थी। तब हमलेगों ने उसके खिलाफ गांधी मैदान में सफदर हाशमी रंगभूमि पर प्रतिरोध कार्यक्रम आयोजित किया था। मुझे उनका पटना में उनके एक वर्कशॉप में भाग लेने का मौका मिला। उसी दौरान मैंने उनका इंटरव्यू भी लिया । तब बिहार में रणवीर सेना की बहुत चर्चा थी। गदर की कही एक बात आज भी याद है जिसमें उन्होंने कहा था यदि राज्य और पुलिस हट जाए तो हम एक दिन में रणवीर सेना को समाप्त कर देंगे। गदर कहा करते थे की हमारे गीत, संगीत आदि का स्रोत श्रमिक जनता रही है। उनके द्वारा गाया गया गीत ‘देखो रे देखो भैया अमेरिका वाला आया, ब्रिटेन जापान के संघ अमरीका वाला आया, बम से भरे बैग लेकर, बंदूके लोड करके भारत माता की छाती पर है पांव रख रहा देखो साला….. “

सुप्रसिद्ध कवि अरुण कमल ने अपने संबोधन में कहा ” एक नए तरह का कवि, ने तरह का गायक, नए तरह के नर्तक और अंत-अंत तक लाल झंडा के साथ रहे। गदर का सबसे बड़ा आंदोलन न सिर्फ कम्युनिस्ट आंदोलन को बल्कि पूरे भारत के सांस्कृतिक आंदोलन को कि लोक को शास्त्रीय महत्ता स्थापित की। जन नाट्य संघ की जो महान धारा है जिसमे अमर शेख, अन्ना भाई सेठ, शैलेंद्र जी को धारा थी उसे उन्होंने आगे बढ़ाया। प्रगतिशील लेखक संघ का जब हैदराबाद में राष्ट्रीय सम्मेलन हुआ तो उसमें गदर अचानक से आ गए और आगे आकर गाने लगे तो उससे काफी उत्तेजना फैली और काफी लोग आगे आ गए। “
बालगोविंद सिंह ने कहा ” गदर बहुत बड़े क्रांतिकारी थे । रंगकर्मियों का जो काम होता है उसकी मशाल से गदर। उनकी आवाज, उनकी आंखों की चमक तमाम नौजवानों को आकर्षित किया करता था। वे नक्सलबाड़ी आंदोलन से जुड़े थे। श्री-श्री, गदर और वरवर राव इन तीनों को बहुत ऊंचा स्थान प्राप्त था। “
चर्चित सामाजिक कार्यकर्ता अरविंद सिन्हा ने श्रद्धांजलि सभा में कहा ” गदर में तेलंगाना के आदिवासी किसान की भावनाओं को अपने गीतों को जगह दी। गदर में सामाजिक बदलाव का जज्बा था । जनवाद और समाजवाद के प्रति उनकी प्रतिबद्धता अतुलनीय है। सोचना चाहिए की हिंदी बेल्ट में सांस्कृतिक आंदोलन इतना कमजोर क्यों है। जनता संस्कृतिकर्म के माध्यम से अधिक बात समझता है। जैसे माओ ने लू शुन के बारे में कहा था की वे सांस्कृतिक आंदोलन के अग्रदूत थे ठीक उसी प्रकार गदर भारत के सांस्कृतिक आंदोलन के अग्रदूत थे। कम्युनिस्ट आंदोलन में निराश होने की जरूरत है।”

प्रगतिशील लेखक संघ के सुनील सिंह ने कई घटनाओं का उदाहरण देते हुए कहा ” गदर आंध्र के तेलंगाना के इलाके में सक्रिय थे। कम्युनिस्ट आंदोलन पर को दमन चल रहा था उसके कारण वे भूमिगत हो गए थे। जो लोग मारे गए थे उन लोगों को ध्यान में रखकर उनका ‘बंदनालू’ नामक संग्रह आया। लेकिन इस कविता का धुन देने के लिए उन्होंने महिलाओं के रोने की आवाज को आधार बनाया था। उन्होंने देखा की इतनी शहादत के बाद भी दलितों की स्थिति में क्यों नहीं सुधार हुआ तो उन्हें लगा कि जाति का सवाल भी उठाना चाहिए। बाद के दिनों में वे अपने गीतों की तरह प्रयोगधर्मी बने रहे। गदर देख रहे थे की हिंदुस्तान में फासीवाद का जो उभार हो रहा है उसके लिए सबको मिलकर काम करना होगा। “

अनिल अंशुमन ने गदर को श्रद्धांजलि देते हुए कहा ” गदर सर्वहारा के सांस्कृतिक संगठक व नायक थे। वे जनता के कवि, गायक और क्रांतिकारी बदलाव के संस्कृतिकर्मी थे। वे वैकल्पिक धारा को वाणी प्रदान करने वाले गायक थे। तेलंगाना का सशस्त्र आंदोलन हम सबके लिए पाठ्यक्रम की तरह थे। गदर को मार्क्सवाद, लेनिनवाद और माओ विचारधारा के साथ जुड़े थे। गदर कभी भी सत्ता के आगे कभी झुके नहीं और कभी समर्पण नही किया। बात हो रही है आंबेडकरवाद और बाकी चीजों के लेकिन ये बात उनके गीतों और संस्कृतिकर्म में नहीं झलकता । ‘जन नाट्य मंडली’ और ‘विरसम’ को बनाया । अब शहीदों को लेकर कुछ पुराना गीता अब नहीं गए पाते। हिंदी पट्टी में फासीवाद मजबूत है लेकिन बिहार में थोड़ी संभावना है। ये तो नहीं होगा की सत्ता से भी पैसा लगेगा और विरोध भी करेंगे यह कैसे होगा। “
स्वतंत्र पत्रकार पुष्पराज ने कहा ” बड़े दुख की बात है कि मोबाइल और एंड्रॉयड के दौर में हिंदी पट्टी में गदर के गीत उपलब्ध नहीं है। 2004 में मुंबई रेजिस्टेंस में वे शामिल हुए थे। उनका हिंदी क्षेत्र में न घूमना सबसे बड़ी दुर्घटना थी। गदर लाल कपड़ा इस कारण नहीं पहनते थे की वे गांधी से प्रभावित थे बल्कि खुले देह में उनको लगता था कि रोवां, रोवाँ खुलता है। गदर की हिंदी जुबान कहां है। गदर जीतने भारत में जाने जाते हैं उसे ज्यादा भारत में जाने जाते हैं। अफसोस है को गदर विचारधारा से जुड़े होने के कारण वे आगे बढ़ पाए। “
जयप्रकाश ने सामाजिक कार्यकर्ता अनिल सिन्हा द्वारा भेजे गए शोक संदेश का पाठ किया । इस संदेश में अनिल सिन्हा ने कहा ” वे कवि लोकगायक, जन नाट्य विधा से जागृत करने वाले विलक्षण कवि थे।उनकी बिहार के भिखारी ठाकुर से तुलना की जा सकती है। इसका विलक्षण रूप वर्ल्ड इकौनौमिक फोरम के समांतर के दौरान प्रस्तुति अविस्मरणीय है यह उनके जीवन की पराकाष्ठा है। उनकी कृति ‘वंदनालू’ शोक का वह विलाप है जिसका कभी कोई अंत नहीं होता है । इसका ट्यून माताओं का विलाप है जब वह मृत बच्चों का विलाप करती है। गदर यहां स्वयं मां बन जाते है। “

श्रद्धांजलि सभा में सूर्यकर जितेंद्र ने भी संबोधित किया। अंत में गदर की याद में मिनट का मौन रखा गया।

सभा में मौजूद प्रमुख लोगों में थे नंदकिशोर सिंह, कुलभूषण गोपाल, डॉ अंकित, कपिलदेव वर्मा, सतीश कुमार, मनोज कुमार झा आदि मौजूद थे।

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