कोरोनाकाल के लाक डाउन अवधि में -: मजदूर :- 

                          -: मजदूर :- 

Shashi Kant Shrivastav – author is a senior citizen ,ex govt officer,true Patriot and a Philospher and a Patnaite.

आजकल कोरोनाकाल के लाक डाउन अवधि में समाचार पत्रों एवं टेलीविजन न्यूज चैनलों से लेकर सोशल मीडिया तक मजदूरों के दशा एवं दुर्दशा की खूब चर्चाएं हो रही हैं, बखूबी दर्शाया भी जा रहा है। साहित्यकारों द्वारा उनकी सहानुभूति में कविताएं एवं लेख भी लिखे जा रहे हैं, मानव समाज से दिल खोल कर उन्हें मदद करने के लिए आग्रह भी किये जा रहें हैं फिर भी आंसू उनके थम नहीं रहे, बदहाली उनका पीछा नहीं छोड़ रही है।माननीय प्रधानमंत्री जी ने कोरोना महामारी के बढ़ते संक्रमण को रोकने के लिए अचानक प्रथम चरण में 25 मार्च 2020 से इक्कीस दिनों के लिए पूरे देश में लाक डाउन की घोषणा कर दी और सभी देशवासियों को चौबीसों घंटे अपने घर में ही रहने को कहा गया। रेल, सड़क परिवहन,जल परिवहन, हवाई जहाज सहित सभी तरह के परिवहन सेवाओं को तत्काल प्रभाव से बिल्कुल बंद कर दिया गया। ऐसा करते समय उन्होंने टेलीविजन प्रसारण द्वारा सभी मजदूरों एवं प्रवासी मजदूरों को यह भरोसा दिलाया था कि सभी हमारे मजदूर भाई बहन जिस जगह जिस प्रदेश में काम कर रहे हैं, वहीं बनें रहेंगे। लाक डाउन के चलते काम बंदी के दौरान भी केन्द्र सरकार एवं वहां की राज्य सरकारों के संयुक्त प्रयास से उन्हें किसी तरह की कोई भी दिक्कत नहीं होने दी जाएगी लेकिन यह पूरी तरह से जमीनी सच्चाई नहीं बन सकी।

                      देश की संघीय ढांचे की वास्तविकता की पोल भी खुल गई। राज्य सरकारों में आपस में सद्भाव, सहयोग एवं समन्वय का बहुत अभाव महसूस किया गया जिसका परिणाम यह हुआ कि हमारे मजदूर भाई बहनों एवं उन पर आश्रित परिजनों को भयंकर यातना सहना पड़ा और अभी भी वो सब परिवार सहित बहुत ही विषम परिस्थिति में जीवन जीने के लिए विवश हैं। सरकार द्वारा उन्हें राहत पहुंचाने के बहुत से उपाय किए जा रहे हैं फिर भी उनके लिए नाकाफी साबित हो रहें हैं।

                         ये कैसी विडम्बना है कि किसी भी देश एवं समाज के निर्माण, विकास एवं संचालन में पूंजी के साथ बराबर के सहभागी होने के बावजूद ये मजदूर बेबसी और बदहाली का जीवन जीने के लिए विवश हैं। इनकी बदहाली दूर करने के लिए आज तक हमारी सरकारों एवं समाज के द्वारा न तो ऐसी नीतियां बनाई गई न तो कोई ठोस उपाय किए गए। अभी हाल ही में हम लोगों ने 30 अप्रील को बाल श्रमिक उन्मूलन दिवस एवं 1 म‌ई को मजदूर दिवस मनाया है। सरकार एवं समाज द्वारा हम लोग प्रति वर्ष यह दिन मनाते हुए मात्र औपचारिकताएं ही निभाते हैं।

                       इसका सबसे बड़ा कारण जो मैं मानता हूं, वो है इन मजदूरों का उचित पारिश्रमिक निर्धारण और उसका भुगतान। इनके शारीरिक श्रम,लगन एवं मेहनत से मात्र पूंजी के बल पर लाखों पूंजीपति लखपति से करोड़पति, करोड़पति से अरबपति तक बन जातें हैं पर इनकी अवस्था में कोई परिवर्तन नहीं होता और पीढ़ी दर पीढ़ी बदहाली में इनका जीवन गुजर जाता है जबकि इनकी तो पूंजी के साथ बराबर की सहभागिता है।

                     क्या कोई भी रियल स्टेट डेवलपर मात्र पूंजी के बल पर बिना श्रमिकों के योगदान के किसी भी निर्माण की कल्पना कर सकता है, बिल्कुल नहीं। कोई भी खेत मालिक बिना श्रमिकों के योगदान से कृषि उत्पादन की कल्पना भी कर सकता है, बिल्कुल नहीं। इसी तरह मानव जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में ये मजदूर भाई बहन अपना बहुत बड़ा योगदान देते हैं फिर भी अपने और अपने परिजनों के लिए जीवन की मूलभूत आवश्यकताएं रोटी, कपड़ा, मकान शिक्षा और स्वास्थ्य पूरी कर पाना इनके लिए एक सपना बन कर ही रह जाता है।

                            अतः मैं अपने देश के सर्वाधिक लोकप्रिय प्रधानमंत्री माननीय नरेन्द्र मोदी जी एवं बिहार के लोकप्रिय मुख्यमंत्री माननीय नीतीश कुमार जी सहित सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों से करबद्ध प्रार्थना करता हूं कि इन मजदूर भाई बहनों के जीवन में खुशहाली लाने के लिए ऐसी दीघकालीन नीतियां एवं कानून बनाते हुए ठोस उपाय किए जाएं जिससे इन्हें साल में 365 दिनों बराबर काम मिले तथा आवश्यकता पर आधारित न्यूनतम प्रर्याप्त पारिश्रमिक का निर्धारण करते हुए इनको भुगतान किया जाय जिससे इनके चेहरे पर मुस्कान आ सके और अपने प्राप्त पारिश्रमिक से सम्मानपूर्वक जीवन जीते हुए अपने परिवार सहित जीवन की मूलभूत आवश्यकताएं रोटी ,कपड़ा ,मकान ,शिक्षा और स्वास्थ्य की पूर्ति कर सकें।

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