
ई वी एम (इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन) में नोटा बटन का प्रावधान किया गया
-: नोटा :-
बहुत दिनों से अपने देश की जनता के आग्रह पर या यूं कहा जाए तो गलत नहीं होगा कि बहुत संघर्ष करने के बाद भारत सरकार एवं भारतीय चुनाव आयोग ने अन्तत: देश के मतदाताओं की चिरलंबित मांगों को मानते हुए, उनकी भावनाओं का सम्मान करते हुए, लोकतंत्र को और मजबूती प्रदान करते हुए एवं प्रभावकारी बनाते हुए E V M ( Electronic Voting Machine ) में नोटा बटन का प्रावधान किया। इस बटन का उपयोग करके अपने देश का कोई भी मतदाता ग्रामपंचायत, शहरी निकाय, विधानसभा एवं लोकसभा चुनावों के दौरान अपने चुनाव क्षेत्र के सभी उम्मीदवारों को नकारते हुए चुनाव आयोग को अपना स्पष्ट संदेश दे सकता है। चुनाव सुधारों की दिशा में यह कदम बहुत ही सराहनीय है।

नोटा – NOTA हालांकि अंग्रेजी के चार शब्दों का एक समूह है : None Of These Alternatives हिन्दी में इसका सीधा अर्थ है ” इनमें से कोई नहीं ” संक्षेप में हिन्दी का एक शब्द बनाने पर बनता है ” इसेकोन “। समाचार पत्रों से मिली जानकारी के अनुसार वर्ष 2015 में संपन्न हुए बिहार विधानसभा के आम चुनाव में पूरे राज्य के करीब डेढ़ लाख मतदाताओं ने पूरे सूझ बूझ से स्वविवेक का इस्तेमाल करते हुए सारी वैधानिक एवं संविधानिक प्रक्रियाओं से गुजरते हुए इस नोटा बटन को दबाकर अपने मताधिकार का उपयोग किया।
वर्ष 2018 में संपन्न हुए पांच राज्यों क्रमशः राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, तेलंगाना एवं मणीपुर विधानसभा के आम चुनावों में तकरीबन पन्द्रह लाख मतदाताओं ने सभी उम्मीदवारों को नकारते हुए नोटा बटन दबाकर अपने मताधिकार का उपयोग किया। इसी तरह वर्ष 2019 के लोकसभा के आम चुनाव में भी कई लाख मतदाताओं ने किसी भी उम्मीदवार के पक्ष में बटन न दबाकर नोटा बटन दबाकर अपने संविधानिक दायित्वों एवं कर्तव्यों को निभाया।
ऐसा करते हुए इन मतदाताओं ने चुनाव लड़ रहे निर्दलीय सहित सभी राष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय राजनीतिक दलों के उम्मीदवारों को बिल्कुल स्पष्ट संदेश दिया फिर भी ऐसा लगता है कि सभी राजनीतिक दल इस संदेश को बहुत हल्के में ले रहे हैं जबकि उन्हें इससे सीख लेने की जरूरत है।
किसी भी उम्मीदवार को चुनाव मैदान में उतारने के पहले सभी छोटे बड़े राजनीतिक दलों को उसका पूरा विवरण प्रिंट मीडिया, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया एवं सोशल मीडिया द्वारा जनता के सामने उपलब्ध कराये जाना चाहिए। इस बात का विशेष ख्याल रखा जाना चाहिए कि उसका कोई अपराधिक रिकॉर्ड तो नहीं है एवं वह अपराधिक प्रवृत्ति का तो नहीं है। उसमें आम जनमानस के लिए सेवा भाव है कि नहीं या गलत इरादे से तो वह राजनीति में नहीं आ रहा है।
इस गंभीर विषय की ओर मैं अपने देश के महामहिम राष्ट्रपति महोदय, माननीय प्रधानमंत्री जी, माननीय प्रधान न्यायाधीश जी सर्वोच्च न्यायालय एवं भारतीय चुनाव आयोग का ध्यान आकृष्ट करते हुए उनसे आग्रह करता हूं कि “नोटा” बटन दबाने की बढ़ती प्रवृत्ति पर मतदाताओं की भावनाओं का सम्मान करते हुए उचित कदम उठाएं। यह प्रवृत्ति किसी भी लोकतांत्रिक देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था पर एक प्रश्न चिन्ह लगाती है।
मैं अपने देश का बहत्तर वर्षीय एक नागरिक हूं। मेरे पिता जी स्वo राम नारायण श्रीवास्तव एक दार्शनिक, देश भक्त एवं सच्चे स्वतंत्रता सेनानी थे। उनका जन्म बिहार राज्य के सारण जिले के बनियापुर थाना अन्तर्गत भुसांव गांव में एक जमींदार परिवार में वर्ष 1917 में हुआ था।वह मैट्रिक पास थे।
वर्ष 1939 – 1942 के बीच ब्रिटिश सरकार के रेलवे अर्थात ” ईस्ट इंडिया रेलवे ” में लखनऊ जंक्शन पर क्लर्क के पद पर कार्यरत रहे। 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन में पूरी सक्रियता से कूद पड़े जिस कारण ब्रिटिश सरकार ने उन्हें नौकरी से डिसमिस कर दिया। आजीवन उन्होंने फिर एक तपस्वी का जीवन जीते हुए, देश और समाज सेवा में लगे रहे। देश हित में इतना बड़ा त्याग करने के बावजूद भी आजाद भारत के केंद्र सरकार एवं राज्य सरकारों से न तो एक पैसे का पेंशन लिया न तो कोई सुविधा ली हालांकि इसके चलते हम परिजनों को काफी कष्ट भी उठाना पड़ा।
मैं पिछले पैंतालिस सालों से पटना शहरी क्षेत्र का एक मतदाता हूं। आपातकाल के बाद वर्ष 1977 से ही एक सजग मतदाता के रूप में लगातार मैं अपने कर्त्तव्यों का पालन करते आ रहा हूं।
मैंने खुद भी वर्ष 2004 में छपरा लोक-सभा निर्वाचन क्षेत्र में पुनर्मतदान के दौरान एक जिम्मेदार पदाधिकारी पीठासीन पदाधिकारी के रूप में चुनाव संपन्न कराया है। बहुत कोशिश के बाद भी मेरे बूथ पर मात्र बावन प्रतिशत ही मतदान हो पाया था जिसमें पुरुष मतदाताओं की अपेक्षा महिला मतदाताओं की संख्या अधिक थी।
अभी भी लोकतंत्र को और सशक्त बनाने के लिए एवं निर्वाचित जनप्रतिनिधियों को अपने जनता ( मतदाताओं ) के प्रति जवाबदेह बनाने के लिए व्यापक चुनाव सुधारों की नितांत आवश्यकता है।

1. मतदान को अनिवार्य घोषित किया जाय एवं
मतदान के दिन मतदान में भाग नहीं लेने वालों
को इस कृति के लिए दंडनीय अपराध की श्रेणी
में लाते हुए दंडनीय अपराध माना जाय।
शत-प्रतिशत मतदान सुनिश्चित करने के
लिए यह बहुत जरूरी है।
2. किसी भी उम्मीदवार को एक्यावन प्रतिशत मत
प्राप्त होने पर ही निर्वाचित घोषित किया जाय।
3. निर्वाचित जनप्रतिनिधियों को वापस बुलाने का
अधिकार मतदाताओं को दिया जाय। लोकनायक
जयप्रकाश नारायण का भी यही सपना था।
आज देश के सभी राजनेता जेपी आंदोलन की
ही उपज हैं।
4. उम्मीदवारों के चुनावी खर्चों पर गहन निगरानी
रखतें हुए, इसके प्रावधानों के तहत निर्धारित
राशि खर्चों का कड़ाई से पालन कराया जाए।