
आर. पी.वर्मा तरुण’ की 88 वीं जयंती के अवसर पर बिहार आर्ट थियेटर की प्रस्तुति नाटक “पागलखाना”
लेखक: अशोक कुमार ‘अंचल
निर्देशन : उज्जवला गांगुली
कथासार
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‘पागलखाना’ एक ऐसा नाटक है,जो आज हमारे समाज और देश की स्थिति को बताता है जहां सत्ता और शौहरत के बल पर सब कुछ जीता जा सकता है।नाटक में कलाकार अपने अभिनय के माध्यम से समाज के चार मुख्य स्तंभ नेता,व्यापारी,मीडिया,प्रशासन की छवि को प्रस्तुत करते हैं। इन चारों स्तंभों के रूप में पहला पागल नेता,जो सता और शक्ति को,दूसरा पागल उद्योगपति है,जो पैसों को,तीसरा पागल पत्रकार है,जो प्रजातंत्र में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को,चौथा पागल गायक है,जो क्रांति और शोषण के खिलाफ विद्रोह प्रदर्शित करता है।

वही इन सभी पागलों की देखभाल व रक्षा करने वाला दरबान जो पागल नही है,बल्कि पागलखाने का रक्षक है वो भी लालच में आकर सता और शक्ति के साथ मिलकर गायक की आवाज को दबाने का प्रयत्न करता है। नाटक में सुरसतिया सभी किरदारों के दिमाग में होने वाले विभिन्न विचारों का केंद्र बनती है और सभी पागल इसके आसपास ही अपनी इच्छाओं को प्रकट करते हैं। इन्ही स्तंभों के द्वारा सुरसतियां पागलखाने की एकमात्र महिला और सफाई कर्मचारी का भी शोषण किया जाता है,जिसका बलात्कार कर मरने के लिए छोड़ दिया जाता है। सुरसतिया को गायक द्वारा संरक्षण देने पर इन लोगों द्वारा गायक की हत्या कर उसके क्रांति और शोषण के खिलाफ बुलंद आवाज को खामोश कर दिया जाता है।
पागलखाना’ वर्तमान समय पर एकदम सटीक बैठता है।प्रतीकात्मक पागलों के माध्यम से वर्तमान राजनीति,सामाजिक,प्रशासनिक व्यवस्था पर करारा प्रहार करता है।साथ ही महिलाओं के प्रति समाज में पुरुष की सोच को भी उजागर करता है।हास्य से शुरू होकर नाटक दर्शकों को गंभीरता की ओर ले जाता है।साथ ही सोचने पर मजबूर करता है कि आखिर हमलोग क्या हैं?,क्यों हैं?,क्या कर सकते हैं?, और क्या कर रहे हैं?.
मंच पर
सुरसतिया : ज्योति कुमारी
पागल नेता : मनीष कुमार
पागल पत्रकार : अविनाश ‘ ‘अकेला’
पागल उद्योगपति : हर्ष कुमार
पागल गायक : श्याम अग्रवाल
दरबान : आशीष रायपत
भांजा : रवि कुमार
नेपथ्य
मंच परिकल्पना :प्रदिप गांगुली
प्रकाश परिकल्पना: उज्जवला गांगुली
प्रकाश संयोजन: राजकुमार शर्मा
ध्वनि एवं संगीत : राजशेखर
सहयोगी : सुनील शर्मा,संजय,बीरबल
प्रस्तुति एवं मीडिया:राकेश कुमार
लेखक: अशोक कुमार अंचल
निर्देशिका: उज्जवला गांगुली
