दुःख रही है अब नदी की देह, बादल लौट आ ! साहित्य सम्मेलन के फ़ेसबुक पटल पर लाइव हुई लोकप्रिय और विदुषी कवयित्री डा शांति सुमन

by Sunayana singh

पटना, १२ जुलाई। “दुःख रही है अब नदी की देह, बादल लौट आ! छू लिए हैं पाँव संझा के/ सीपियों ने खोल अपने पंख/ होंठ तक पहुँचे हुए अनुबंध के/ सौंप आते कई उजले शंख/ हो गया है इंतज़ार विदेह, बादल लौट आ!”। ऐसी ही कोमल काव्य-पंक्तियों से सुधी दर्शक आनंद की गंगा में तब तक नहाते रहे, जब तक कवयित्री ने नमस्कार कर विदा न मांग ली। बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन के फ़ेसबुक पटल पर, रविवार की संध्या ६ बजे से ७ बजे तक, नवगीत की चर्चित कवयित्री डा शांति सुमन लाइव रहीं।

ग्राम्य-अंचल को अपने काव्य-कंठ में धारण कर उन्होंने यह गीत पढ़ा कि, “दरबाज़े का आम-आँवला/ घर का तुलसी चौरा/ इसीलिए अम्मा ने अपना गाँव नही छोड़ा!— सीढ़ियाँ चढ़ने लगी हैं धूप दिन की/ हरियाने लगी दीवार की लहरें!” इसी तरह मृदु भावों के अनेक गीत, “बाहर की तो बात पता है/ तुम घर की लिखना/ ज़रूर लिखना”, “तुम मिले तो बोझ है कम/ बहुत हल्की पीठ की गठरी” सुमन जी के कंठ से निकले और दर्शकों के हृदय में उतरते गए।

आरंभ में पटल पर लाइव आरंभ होते ही, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने डा शांति सुमन का स्वागत और अभिनंदन किया। उनके साथ ही उन्होंने सैकड़ों की संख्या में पटल से जुड़ कर आनंद ले रहे सुधी दर्शकों का भी अभिवादन किया। डा सुलभ ने बताया कि १४ जुलाई को हिन्दी और मैथिली की अत्यंत चर्चित और लोकप्रिया कवयित्री डा शेफालिका वर्मा दिल्ली से इस पटल पर लाइव रहेंगी।

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