अतीत के वातायन का सफल मंचन।


पटना, 14 अगस्त, 2024
राजधानी की चर्चित व सक्रिय सांस्कृतिक संस्था ‘‘प्रागण’, पटना स्वतंत्रता दिवस
की पूर्व संध्या पर बिहार के स्वतंत्रता सेनानियों पर आधारित हिन्दी नाट्य रूपक
‘अतीत के वातायन’ का मंचन आज दिनांक 14 अगस्त 2024 को संध्या 6ः45
बजे से स्थानीय प्रेमचंद्र रंगषाला, राजेन्द्र नगर, पटना (बिहार) में किया गया।
‘‘अतीत के वातायन’’ नाट्य रूपक है, इसमें स्वतंत्राता संग्राम में बिहार प्रदेश
की भागीदारी दर्शायी गयी है। सर्वप्रथम भारत माता की वंदना की जाती है, तत्पश्चात्
सूत्राधार के रूप में बिहार प्रदेश की आत्मा आकाशवाणी के रूप में प्रकट होकर
अपनी कला यात्रा का बखान करती है। आजादी की प्रथम लड़ाई के युग से कहानी
की शुरूआत होती है। संथाल विद्रोह, सिपाही विद्रोह आदि की चर्चा के साथ-साथ
भोजपुर के कुँवर सिंह के आत्मोत्सर्ग की उपकथा दिखलायी जाती है, जिसमें कुंवर
सिंह की अंग्रेजों से बगावत और युद्ध के दौरान गोली लगे हाथ को स्वंय काटकर
गंगा में प्रवाहित करने के दृश्य दिखलाये जाते है।

अब शुरू होता है- बीसवीं सदी
का आरंभ। बंगाल का बंटवारा, स्वदेशी आंदोलन, जिसमें बिहार के लोग बढ़-चढ़ कर
हिस्सा लेते हैं और विदेशी वस्त्रा तथा सामानों की होलिका जलाते हैं। तभी
मुजफ्रपफरपुर में अंग्रेजो के विरूद्ध पहला बम विस्पफोट होता है, अंग्रेज जिलाधीश के
अत्याचारों से आक्रोशित खुदीराम बोस और प्रपफुल्लचाकी ने उसकी बग्घी पर बम
फेंका, परन्तु वह बच गया, क्योंकि उसकी गाड़ी में दूसरे लोग सवार थे। खुदीराम
बोस को फांसी दी जाती है। उस अमर शहीद ने हंसते-गाते फांसी के फंदे को चूम
लिया। उधर चम्पारण में नील की खेती होती है।

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नील की कोठियों में अतातायी
अंगे्रज रहते है, जो खेत में काम करनेवाले श्रमिकों पर तरह-तरह के अत्याचार करते
है। यहां तक की उनकी बहन-बीबी-बेटियों को भी उठा ले जाते हैं। एक किसान
राजकुमार शुक्ल के आमंत्राण पर महात्मा गांधी चम्पारण आते हैं और यहीं से अंग्रेजों
के विरूद्ध शंखनाद करते हैं। यही से देशरत्न राजेन्द्र प्रसाद, सच्चिदनानंद सिन्हा, डाॅ0
बारी आदि बिहार के स्वतंत्राता सेनानियों ने महात्मा गाँधी का अनुगमन किया।
अंग्रेजों भारत छोडो के नारे से दिशा-दिशा गूँज उठी। विभिन्न क्रांतिकारी आंदोलनों से
गुजरते हुए सन् 1942 का साल आया। छात्रों ने सचिवालय पर तिरंगा फहराया और
ब्रिटिश गोलियों से शहीद हुए। जिनका स्मारक आज भी मौजूद है। भारत पाकिस्तान
के बंटवारे को लेकर काफी गहमा-गहमी होती है और अंततः हिन्दू-मूस्लिम दंगों में
मंच पर
परिणत हो जाती है।

गाँधी जी के भूख हड़ताल के बाद दंगा खत्म होता है।
15 अगस्त 1947 को भारत आजाद होता है। पंडित नेहरू झंडोत्तोलन करते हैं और
राष्ट्र को संदेश देते हैं। अंत में राष्ट्रीय गीत के साथ नाट्य रूपक ‘‘अतीत के
वातायन’’ की समाप्ति होती है। इस प्रकार सन् 1771 ई0 से लेकर 1947 ई0
तक स्वतंत्राता संग्राम में बिहार की भूमिका को यह नाट्य रूपक परिलक्षित करता है।
इसमें भाग लेने वाले कलाकारः-
इस नाट्य प्रस्तुति के अवलोकन हेतु राज्य के कला, संस्कृति एवं युवा विभाग
की अपर मुख्य सचिव – श्रीमती हरजोत कौर, निदेषक, सांस्कृतिक कार्य – श्रीमती
रूबी, सदस्य, बिहार विधान परिषद
शहर के गणमान्य अतिथिगण उपस्थित थ

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