साहित्य संगीत एवं नाट्य समागम में मुशायरा और डायन का मंचन


सामयिक परिवेश द्वारा आयोजित तीन दिवसीय साहित्य संगीत एवं नाट्य समागम 10 वें आदि शक्ति प्रेमनाथ खन्ना स्मृति समारोह के दूसरे दिन मुशायरा और डायन नाटक का मंचन किया गया| कला संस्कृति एवं युवा विभाग,बिहार सरकार के सौजन्य हो रहे तीन दिवसीय आयोजन कासिम खुरशीद के संयोजन में मुशायरा का आयोजन हुआ| अशोक कुमार सिन्हा की कहानी डायन का मंचन कला जागरण के कलाकरों ने संगीत नाटक अमृत पुरस्कार से सम्मानित सुमन कुमार के निर्देशन में किया| डायन का नाट्य रूपांतरण विवेक कुमार ने किया| इस अवसर पर सामयिक परिवेश की पत्रिका का विमोचन किया गया|
डायन नाटक में मंच पर महिमा, विवेक कुमार, धीरज कुमार, अजीत गुज्जर, विष्णु देव कुमार,चंद्रावती कुमारी, अरविन्द कुमार, प्रिंस राज, संजय साहनी, नागेंद्र कुमार, अमन कुमार पूरी, पवन कुमार सिंघम,मिथिलेश कुमार सिन्हा, आजाद शक्ति, अराध्या सिन्हा, उदीस राज, इतीशा रानी, सुशांत कुमार, याश्वन रूद्र एवं हरि कृष्ण सिंह मुन्ना सहित सभी सभी कलाकारों में अपने शानदार अभिनय से दर्शकों को अंत तक बांधे रखा |
मंच परे :संगीत परिकल्पना – राहुल राज, प्रकाश परिकल्पना – राजीव कुमार/ अनुराग कुमार , मंच सज्जा – सुनील कुमार/ विनय कुमार, प्रकाश एवं ध्वनि नियंत्रण – मनीष कुमार, रूप सज्जा – विनय कुमार, वस्त्र विन्यास – रीना कुमारी प्रस्तुति समन्वय- अजीत गुज्जर, प्रस्तुति सहयोग – रणविजय सिंह , विशेष सहयोग- हीरालाल राय, प्रस्तुति नियंत्रण – रोहित कुमार, मार्गदर्शन – गणेश प्रसाद सिन्हा/ अखिलेश्वर प्रसाद सिन्हा

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कहानी- अशोक कुमार सिन्हा, नाट्य रूपांतरण – विवेक कुमार, परिकल्पना एवं निर्देशन – सुमन कुमार
सौजन्य: कला संस्कृति एवं युवा विभाग, बिहार सरकार विशेष आभार- सामयिक परिवेश
आभार – बिहार संगीत नाटक अकादमी,प्रेमचंद रंगशाला परिवार,रंगकर्मी गण एवं सभी पत्रकार बंधु
प्रथम सत्र में ममता मेहरोत्रा एवं सविता राज के ग़ज़लों को राकेश कुमार ने बहुत ही सुंदर अंदाज में प्रस्तुत किया।कोरस पर रजनी रंजन ,आर्गन पर राजन
कुमार,तबला पर राजन कुमार ,ऑक्टा पैड पर अनुज कुमार सिन्हा थे।ममता मेहरोत्रा की ग़ज़ल “लाख जतन करने पड़ते हैं इश्क की मंजिल पाने को” ने खूब वाहवाही बटोरी।सविता राज की ग़ज़ल “दर्द उनका मोहब्बत का सहते रहे ,दिलरुबा दिलरुबा जिनको कहते रहे” को खूब तालियां मिली।क़ासिम खुर्शीद,श्वेता ग़ज़ल ,सविता राज ग़ज़ल के दूसरे सत्र के संयोजक रहे। श्वेता ग़ज़ल की ग़ज़ल “इश्क़ ने दिल को छुआ सच्ची इबादत हो गई,रूह की बेजा तक़ल्लुफ़ से बग़ावत हो गई” खूब सराही गई।आराधना प्रसाद ने सिर्फ़ उम्मीद पर टिकी मिट्टी कुछ नए ख्वाब देखती मिट्टी इक नई जिंदगी की चाहत में चाक पर घूमती रही मिट्टी” ने खूब वाहवाही बटोरी।पीयूष आजाद ने किसी से आशनाई बे जरूरत कौन करता है,बताओ आजकल सच्ची मोहब्बत कौन करता है ” सुनाई।
यावर राशिद यावर ने “हवाओं से नजरें मिलाने लगा हुं ,मैं अब रेत पर घर बनाने लगा हूं ।सुनाई।शमीम शोला ने “किसको कहते हैं पसीने की कमाई पूछो,ये बनाएंगे तुम्हें धूप में जलने वाले”सुनाई।ग़ज़ल प्रस्तुत करने वालों में ममता मेहरोत्रा,कासिम खुर्शिद, सविता राज श्वेता ग़ज़ल,राकेश कुमार, डॉ. मीना कुमारी परिहार,शमीम शोला ,प्रखर पुंज,अविनाश बंधु ,पूनम सिन्हा श्रेयशी,रेखा भारती मिश्र ,ओसामा खान ,अमृतेश कुमार मिश्रा,आराधना प्रसाद,अनीता मिश्रा सिद्धि,मो नसीम अख़्तर,विकाश राज,यावर राशिद”यावर”,राजकांता राज कई शायरों ने काफी प्रभावित किया।
नाटक डायन में झारखंड के ग्रामीण इलाके में बसी एक छोटी सी बस्ती में बुधनी रहती है, जो एक साहसी और मजबूत लड़की है। उसके जीवन में कई चुनौतियाँ आई हैं, लेकिन उसने कभी हार नहीं मानी। जब उसके पिता का निधन हो गया, तो उसकी जिंदगी और भी मुश्किल हो गई। देवकी मुंडा, जो गांव की प्रभावशाली मुखिया है, ने बुधनी के प्रति बुरी नीयत रखनी शुरू कर दी और उसका फायदा उठाने की कोशिश करने लगी।गांव में एक रहस्यमय महामारी फैल गई, और अचानक बुधनी को इसका दोषी ठहराया जाने लगा। ग्रामीण, जो पहले से ही अंधविश्वास और भय से ग्रस्त थे, बुधनी और उसकी माँ को चुड़ैल (डायन) कहकर दोषी ठहराने लगे। यह स्थिति और भी गंभीर हो गई जब ग्रामीण उनके खिलाफ हो गए और उन्हें प्रताड़ित करने लगे।लेकिन इसी समय, तिलेश्वरी, एक निडर और सहानुभूतिपूर्ण सामाजिक कार्यकर्ता, ने बुधनी और उसकी माँ का समर्थन करने के लिए आगे आकर खड़ी हो गई। तिलेश्वरी ने अन्यायपूर्ण आरोपों के खिलाफ आवाज उठाई और बुधनी के अधिकारों के लिए लड़ने का फैसला किया।जैसे-जैसे समय बीतता गया, तिलेश्वरी के प्रयासों से बुधनी में एक नई आत्मविश्वास जागृत हुई। उसने अपने अधिकारों के लिए लड़ने का फैसला किया और गांव के चुनाव में खड़ी होने का मन बनाया। तिलेश्वरी के मार्गदर्शन और समर्थन से, बुढ़ानी का अभियान गति पकड़ने लगा और उसने ग्रामीणों का दिल जीत लिया।अंततः, बुधनी ने चुनाव जीत लिया, जो न केवल गांव की शक्ति की गतिशीलता में एक महत्वपूर्ण बदलाव का प्रतीक था, बल्कि बुढ़ानी की अविनाशी आत्मा की जीत को भी दर्शाता था। इस जीत ने साबित कर दिया कि साहस, दृढ़ संकल्प और सही समर्थन के साथ, कोई भी चुनौती पार की जा सकती है और बदलाव लाया जा सकता है।

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