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पटना, 16 मई 2025।
राजकीय महिला महाविद्यालय, गुलजारबाग में शुक्रवार को गौरैया संरक्षण को लेकर एक सराहनीय पहल की गई। संजय गांधी जैविक उद्यान, पटना के सौजन्य से आयोजित इस कार्यक्रम के तहत महाविद्यालय परिसर के वृक्षों पर लकड़ी से बने सुंदर घोंसले टांगे गए। इस पहल का उद्देश्य पक्षियों, विशेष रूप से विलुप्ति की कगार पर पहुंच रही गौरैया के संरक्षण के प्रति छात्राओं में जागरूकता फैलाना था।
कार्यक्रम की शुरुआत महाविद्यालय की प्राचार्या श्रीमती श्रुति तेतरवे के मार्गदर्शन में हुई। उन्होंने छात्राओं को संबोधित करते हुए गौरैया जैसे छोटे पक्षियों की पारिस्थितिकी में भूमिका और उनके संरक्षण की आवश्यकता पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि आधुनिक जीवनशैली, कंक्रीट के जंगल और पेड़ों की कटाई ने इन पक्षियों के प्राकृतिक आवास को नष्ट कर दिया है, जिससे गौरैया की संख्या में तेजी से गिरावट आई है।
प्राचार्या ने छात्राओं को घरों और शिक्षण संस्थानों में पक्षियों के लिए दाना-पानी और सुरक्षित घोंसले की व्यवस्था करने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने बताया कि यदि हम अपने आसपास थोड़ी सी जागरूकता और संवेदनशीलता दिखाएं, तो इन पक्षियों को बचाया जा सकता है।
कार्यक्रम के दौरान संजय गांधी जैविक उद्यान की टीम के सदस्य शिवानी, रोहित, शाजिया और प्रियांशु ने छात्राओं को घोंसला बनाने की विधि विस्तार से समझाई। उन्होंने बताया कि लकड़ी से बने इन घोंसलों को पेड़ों पर टांगना पक्षियों के लिए सुरक्षित और उपयोगी होता है। इसके अलावा, उन्होंने मिट्टी के सकोरे भी परिसर में रखे ताकि इन गर्मियों में पक्षियों को पीने के लिए पानी और खाने के लिए दाना आसानी से मिल सके।
छात्राओं ने इस पहल में उत्साहपूर्वक भाग लिया और पक्षी संरक्षण की दिशा में छोटे-छोटे कदमों की अहमियत को समझा। सृष्टि, समीक्षा, पूनम, स्नेहा, भूमिका, अंजली, नूतन समेत अन्य छात्राओं ने स्वयं अपने हाथों से घोंसले टांगे और परिसर में सकोरे रखे।
कार्यक्रम में महाविद्यालय की शिक्षिकाएं डॉ. सबीहा अहसन, डॉ. संगीता विश्वनाथ, डॉ. उषा यादव, डॉ. रंजू कुमारी एवं सुनीता कुमारी भी उपस्थित रहीं। उन्होंने भी छात्राओं के साथ मिलकर इस नेक कार्य में भाग लिया और गौरैया संरक्षण के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दिखाई।
यह कार्यक्रम न केवल पर्यावरण संरक्षण की दिशा में एक सराहनीय कदम रहा, बल्कि छात्राओं के भीतर प्रकृति और जीवों के प्रति संवेदनशीलता भी विकसित करने में सहायक सिद्ध हुआ। महाविद्यालय प्रशासन ने भविष्य में भी ऐसे कार्यक्रमों के आयोजन की बात कही, जिससे छात्राएं सामाजिक और पर्यावरणीय जिम्मेदारियों को और बेहतर ढंग से समझ सकें।
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