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कथासम्राट मुंशी प्रेमचंद की जयंती के अवसर पर कला, संस्कृति एवं युवा विभाग, बिहार सरकार के द्वारा प्रेमचंद रंगशाला में कार्यक्रम का आयोजन किया गया।
कार्यक्रम की शुरुआत श्रीमती हरजोत कौर, अपर मुख्य सचिव, कला, संस्कृति एवं युवा विभाग, श्रीमती रूबी, निदेशक सांस्कृतिक कार्य कला, संस्कृति एवं युवा विभाग, बिहार बिहार संगीत नाटक अकादमी के सचिव श्री अनिल कुमार सिन्हा एवम अन्य गणमान्य अतिथियों द्वारा दीप प्रज्वलित कर किया गया। इस दौरान परिसर मे स्थित मुंशी प्रेमचंद की प्रतिमा पर माल्यार्पण किया गया।
कार्यक्रम के शुरुआत में इमेजिनेशन, पटना के द्वारा प्रेमचंद की प्रसिद्ध कहानी कहानी कफन पर आधारित नाटक “कफन” का मंचन निर्देशक कुंदन कुमार के द्वारा किया गया।



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कफन एक ऐसी सामाजिक व्यवस्था की कहानी है जो श्रम के प्रति आदमी में हतोत्साह पैदा करती है क्योंकि उस श्रम की कोई सार्थकता उसे नहीं दिखायी देती है। औरत के मर जाने पर कफन का चंदा हाथ में आने पर घीसू और उसके बेटा माधव की नियत बदलने लगती है, हल्के से कफन की बात पर दोनों एकमत हो जाते हैं कि लाश उठते-उठते रात हो जायेगी। रात को कफन कौन देखता है? कफन लाश के साथ जल ही तो जाता है। और फिर उस हल्के कफन को लिये बिना ही ये लोग उस कफन के चन्दे के पैसे को शराब, पूड़ियों, चटनी, अचार और कलेजियों पर खर्च कर देते हैं। अपने भोजन की तृप्ति से ही दोनों बुधिया की सद्गति की कल्पना कर लेते हैं-हमारी आत्मा प्रसन्न हो रही है तो क्या उसे सुख नहीं मिलेगा। जरूर से जरूर मिलेगा। भगवान तुम अंतर्यामी हो। उसे बैकुण्ठ ले जाना। अपनी आत्मा की प्रसन्नता पहले जरूरी है, संसार और भगवान की प्रसन्नता की कोई जरूरत है भी तो बाद में।
कार्यक्रम में आगे एसोसिएशन फॉर सोशल हारमोनी एंड आर्ट, छपरा के द्वारा मुंशी प्रेमचंद की कहानी “विनोद” पर आधारित नाटक ये कैसी दिल्लगी..? का मंचन किया गया । जिसका निर्देशन मध्य प्रदेश नाट्य विद्यालय,भोपाल के पुर्व छात्र मोहम्मद जहांगीर ने किया।





नाटक में एक कॉलेज के कैम्पस की कहानी है जिसमें चक्रधर नाम का एक युवा अपने मौलिक व्यक्तित्व के साथ कॉलेज में प्रवेश लेता है उसके साथी कैसे उसके सीधे- साधे व्यक्तितव का मज़ाक उड़ते हैं साथ ही उसको आर्थिक रूप से भी नुकसान पहुंचाते है , ये सारे चक्र वो सीधा – साधा विद्यार्थी समझ नहीं पाता है , नाटक में मोड तब आ जाता है जब उसको मज़ाक के चक्कर में फेल होना पड़ता है और कॉलेज से निष्काषित होने की भी नौबत आ जाती है l
नाटक ये कैसी दिल्लगी.? आज के परिवेश में कॉलेज में होने वाले रैगिंग जैसे गंभीर कृत्य के ओर भी ध्यान आकर्षित कराता है। इस समय जब विद्यार्थियों पर पढ़ाई और उनके कैरियर का इतना दवाब है वैसे समय में मुंशी प्रेमचंद द्वारा लिखी गई ये कहानी और इस पर आधारित नाटक बहुत ही प्रसंगिक हो जाता है
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