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कथासार
रात के सन्नाटे में मौत के कदमो की आने वाली आहट कैसे भुलाई जा सकती है! गंगा में तैरती लाशें अभी भी आखों से उतर नहीं पाई है, रेत में दफनाये गए लोग पानी के उतरते रंग-बिरंगे फसलों की तरह उग आए हैं!शमशानों कब्रिस्तानों में दूर- दूर तक लगी लम्बी कतारें…..एक साथ सैंकड़ों जलती लाशों की तस्वीरें चील के पंजों की तरह रह रह कर दिलों -दिमाग पर पंजे मारती हैं! गुजरा वक्त भूलने का नहीं है…..जब वक़्त एकबारगी ठहर सा गया था । दो वृद्ध से प्रारम्भ नाटक अंत आते आते एकल का रूप लेता है, जहां बचती हैं तो सिर्फ़ अव्यवस्था,भ्रस्टाचार चित्कार, और सामाजिक पतन । सब-कुछ अनदेखा सा अनजाना सा । इससे बचा जा सकता था, तो फिर क्यों नहीं ? अवसर वह भी आपदा में….प्राणों के मूल्य पर …यकायक जिनके जाने से चौंक जाते हैं
समझ में नहीं आता क्या कहें होठों से शब्द नहीं निकलते हो जाते हैं निःशब्द……
पात्र परिचय
आदिल रशीद (अजय साहनी)
सुरभि कृष्णा ( गार्गी साहनी)
मंच परे :-
प्रकाश : राजीव रॉय
मंच निर्माण : विनय कुमार
वस्त्र विन्यास: शोएबा प्रवीण
रंग-वस्तु : रणवीर कुमार
ध्वनि : कृष्णा कुमार
प्रस्तुति नियंत्रक: शांतनु चक्रवर्ती
प्रस्तुति: रंग-रूप,वैशाली
लेखक: राजेश कुमार
निर्देशक: अंजारुल हक़