नई दिल्ली। वक्फ संशोधन विधेयक को लेकर तस्वीर साफ हो गई है। यह विधेयक 2 अप्रैल, बुधवार को दोपहर 12 बजे लोकसभा में पेश किया जाएगा। बिजनेस एडवाइजरी कमेटी की बैठक में इस पर मुहर लग गई है। सत्ताधारी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) की अगुवाई कर रही भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने अपने सांसदों को तीन लाइन का व्हिप जारी कर सदन में उपस्थित रहने के निर्देश दिए हैं।
विधेयक में टीडीपी के संशोधन शामिल
तेलुगु देशम पार्टी (टीडीपी) द्वारा प्रस्तावित तीन संशोधनों को विधेयक में शामिल किया गया है। ये संशोधन इस प्रकार हैं:
वक्फ-पूर्वव्यापी नहीं: वर्तमान में वक्फ नियंत्रण के तहत कोई भी संपत्ति इस बिल से प्रभावित नहीं होगी।
कलेक्टर अंतिम प्राधिकारी नहीं: अब कलेक्टर को संपत्ति के अंतिम फैसले का अधिकार नहीं होगा।
डिजिटल दस्तावेज जमा करने की समय सीमा बढ़ी: अब डिजिटल रूप से दस्तावेज जमा करने के लिए छह महीने की अतिरिक्त समय सीमा दी गई है।
क्या बदलाव आएंगे?
हालांकि वक्फ संशोधन विधेयक पूरी तरह से हिंदू संगठनों की मांगों को पूरा नहीं करता, लेकिन इसे सही दिशा में उठाया गया कदम माना जा रहा है। विधेयक से निम्नलिखित प्रमुख बदलाव देखने को मिलेंगे:
वक्फ भूमि पर अवैध कब्जा नहीं होगा।
वक्फ संपत्ति घोषित करने का अधिकार अब वक्फ बोर्ड के बजाय जिला कलेक्टर या उच्च सरकारी अधिकारियों के पास होगा।
मौखिक वक्फ घोषणाओं को समाप्त किया जाएगा और प्रत्येक वक्फ संपत्ति के लिए लिखित विलेख अनिवार्य होगा।
वक्फ बोर्डों में गैर-मुस्लिम और मुस्लिम महिलाओं को भी प्रतिनिधित्व मिलेगा।
मुतवल्लियों (वक्फ प्रबंधकों) के लिए नए सख्त नियम लागू किए जाएंगे।
विवादों के समाधान के लिए वक्फ न्यायाधिकरण के निर्णयों के विरुद्ध 90 दिनों के भीतर उच्च न्यायालय में अपील करने की अनुमति होगी।
संपूर्ण वक्फ संपत्तियों का डिजिटलीकरण किया जाएगा जिससे रिकॉर्ड पारदर्शी होंगे।
सरकार द्वारा वक्फ संपत्तियों का ऑडिट किया जा सकेगा।
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एनडीए के पास संख्याबल का समर्थन
वक्फ संशोधन विधेयक पारित करने के लिए एनडीए के पास पर्याप्त बहुमत है:
लोकसभा: 293/543
राज्यसभा: 125/245
बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए को बीजेडी और वाईएसआर कांग्रेस जैसी पार्टियों के समर्थन की आवश्यकता नहीं है। टीडीपी, जो एनडीए की दूसरी सबसे बड़ी पार्टी (16 लोकसभा सांसद) है, ने विधेयक के समर्थन की घोषणा कर दी है।
राजनीतिक प्रतिक्रिया
इस विधेयक को लेकर विपक्ष और अन्य राजनीतिक दलों की अलग-अलग प्रतिक्रियाएं सामने आई हैं।
उमर अब्दुल्ला ने आलोचना करते हुए कहा कि यह विधेयक एक धर्म को निशाना बनाता है।
महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने ट्वीट किया कि यह देखने की बात होगी कि उद्धव ठाकरे की शिवसेना बालासाहेब ठाकरे की विचारधारा का पालन करती है या कांग्रेस के साथ तुष्टिकरण की राजनीति करती है।
जदयू ने कांग्रेस पर हमला करते हुए कहा कि उन्हें मुसलमानों के हितों पर प्रमाण पत्र देने की जरूरत नहीं है।
विधेयक पर अगली कार्रवाई
अब सबकी नजरें संसद में होने वाली बहस और मतदान पर टिकी हैं। यदि विधेयक लोकसभा और राज्यसभा में पारित हो जाता है, तो इसे राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद लागू कर दिया जाएगा।
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