Global media Update tech Update & Automobile Life Style & Entertainment
पटना। कला, संस्कृति एवं युवा विभाग, बिहार सरकार के सौजन्य से आयोजित द्वितीय राज्य स्तरीय कला प्रतियोगिता में पारदर्शिता की कमी और चयन प्रक्रिया को लेकर गंभीर सवाल उठाए जा रहे हैं। बिहार ललित कला अकादमी के अंतर्गत आयोजित इस प्रतियोगिता में चित्रकला, मूर्तिकला, छापाकला, फोटोग्राफी, रेखांकन और लोककला की विधाओं में कलाकारों ने भाग लिया। विजेताओं को नगद राशि प्रदान की गई, परंतु प्रतियोगिता की निष्पक्षता को लेकर प्रतिभागियों और कला क्षेत्र से जुड़े लोगों में असंतोष देखा जा रहा है।
विशेष रूप से फोटोग्राफी श्रेणी के पुरस्कारों को लेकर कई कलाकारों ने अपनी पुरजोर असहमति जताई है। कलाकारों का कहना है कि पुरस्कृत एक फोटोग्राफ में न तो कम्पोजीशन का संतुलन है, न ही उसमें कोई दार्शनिकता झलकती है। फोटो का एंगल साधारण है, लाइट फॉल का कोई विशेष प्रभाव नहीं है, और न ही रंगों का समुचित संयोजन किया गया है। उल्लेखनीय है कि छठ जैसे जीवंत और रंग-बिरंगे पर्व की तस्वीर को ब्लैक एंड व्हाइट मोड में प्रस्तुत किया गया, जिससे उसका प्रभाव फीका पड़ गया।
प्रतिभागियों का आरोप है कि चयनित तस्वीर न केवल साधारण है, बल्कि उसे देखकर यह संदेह होता है कि जजों द्वारा किसी परिचित कलाकार को लाभ पहुंचाने का प्रयास किया गया है। गैलरी में इससे बेहतर और प्रभावशाली तस्वीरें मौजूद थीं, परंतु उन पर जजों की नजर नहीं गई।
सूत्रों के अनुसार, प्रतियोगिता में प्राप्त प्रविष्टियों का मूल्यांकन प्रतियोगिता के सभी विधा के विशेषज्ञों द्वारा नहीं कराया गया, बल्कि अन्य विधाओं के जजों द्वारा ही फोटोग्राफी और लोक कलाओं जैसी विशिष्ट विधा का मूल्यांकन करा लिया गया। प्रतियोगिता में आई प्रविष्टियों को पहले दौर में तीन सदस्यीय जूरी ने मूल्यांकन किया, जिसमें दो पेंटिंग और एक मूर्तिकला से जज थे, प्रथम जूरी में कोई भी जज फोटोग्राफी या लोककला से नहीं थे, प्रथम जूरी के चयन के बाद फाइनल जूरी में भी फोटोग्राफी विधा से एक भी जज को नहीं रखा गया था, बल्कि एक छापाकला और दूसरे मूर्तिकला के विशेषज्ञ थे। यही कारण है कि पुरस्कार के लिए चयनित एक फोटो की बात तो छोड़िए प्रदर्शनी के लिए भी कुछ ऐसे छायाचित्रों का चयन किया गया जिसका स्तर एक राज्य स्तरीय प्रदर्शनी के लायक तो बिल्कुल ही नहीं था। प्रतियोगिता के प्रचार-प्रसार में भी कोताही बरती गई। राज्य स्तरीय प्रतियोगिता होने के बावजूद इसकी सूचना सीमित कलाकारों तक ही पहुंच पाई, जिससे व्यापक भागीदारी नहीं हो सकी।
कई वर्षों से बिहार कला पुरस्कार लंबित पड़े हैं, ऐसे में इस तरह की प्रतियोगिताओं से कलाकारों में नई उम्मीद जगनी चाहिए थी। लेकिन जब आयोजन में पारदर्शिता और गुणवत्ता का अभाव हो, तो यह युवा कलाकारों के मन में निराशा और अविश्वास पैदा करता है।
कलाकारों का कहना है कि यदि फोटोग्राफी जैसी विधा का मूल्यांकन उसके मापदंडों – जैसे कि एंगल, लाइट फॉल, रंग संयोजन, विषय की नवीनता और स्वाभाविकता – के आधार पर नहीं किया जाएगा, तो यह इस विधा और इसके कलाकारों के साथ अन्याय होगा।
साथ ही चित्रकला के प्रीतिभागियों द्वारा यह सवाल उठाया जा रहा है कि प्रीतियोगिता में सबसे ज्यादा प्रविष्टियाँ चित्रकला में आई थी फिर भी चित्रकला के लिए सिर्फ एक पुरस्कार दिया गया और छापाकला में कम प्रविष्टि आने के बावजूद भी दो पुरस्कार दिए गए, जो कि चित्रकला विधा के साथ छल जैसा है।
अब यह देखना होगा कि बिहार ललित कला अकादमी और कला, संस्कृति विभाग इस विषय पर क्या प्रतिक्रिया देती है और भविष्य में ऐसे आयोजनों को पारदर्शी और न्यायसंगत बनाने के लिए क्या कदम उठाए जाते हैं। इस वक्त बिहार की कला क्षेत्र को ऐसी प्रणाली चाहिए जो जवाबदेह और पारदर्शी हो, न कि उन चाटुकार कलाकारों और अधिकारियों की मंडली जो ललित कला अकादमी को अपनी निजी संपत्ति मान बैठे हों । जिनकी मिलीभगत के कारण युवा और कर्मठ कलाकारों का भरोसा उठ गया है।
Now retrieving the price.
(as of 12 May 2025 22:14 GMT +01:00 - More infoProduct prices and availability are accurate as of the date/time indicated and are subject to change. Any price and availability information displayed on [relevant Amazon Site(s), as applicable] at the time of purchase will apply to the purchase of this product.)