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परिचय होली का त्योहार भारत में हर्षोल्लास और रंगों के साथ मनाया जाता है। इस त्योहार की पूर्व संध्या पर होलिका दहन किया जाता है, जिसे ‘छोटी होली’ भी कहा जाता है। यह परंपरा बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक है। होलिका दहन के पीछे एक प्राचीन पौराणिक कथा जुड़ी हुई है, जो भक्त प्रह्लाद, दैत्यराज हिरण्यकशिपु और उसकी बहन होलिका से संबंधित है।
होलिका दहन की पौराणिक कथा पौराणिक कथा के अनुसार, हिरण्यकशिपु नामक असुर राजा ने कठोर तपस्या कर भगवान ब्रह्मा से अमरता का वरदान प्राप्त किया। इस वरदान के अनुसार, उसे न दिन में मारा जा सकता था, न रात में; न मानव मार सकता था, न पशु; न घर में, न बाहर; न आकाश में, न पृथ्वी पर; और न ही किसी शस्त्र से उसका वध हो सकता था। इस वरदान के कारण वह अहंकारी हो गया और स्वयं को ईश्वर मानने लगा। उसने अपने राज्य में विष्णु की पूजा पर प्रतिबंध लगा दिया।
हालांकि, हिरण्यकशिपु का पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु का परम भक्त था और उनकी भक्ति में लीन रहता था। यह बात हिरण्यकशिपु को सहन नहीं हुई, और उसने कई बार प्रह्लाद को मारने का प्रयास किया, लेकिन हर बार विष्णु जी की कृपा से वह बच जाता।
अंततः, हिरण्यकशिपु ने अपनी बहन होलिका की सहायता ली, जिसे अग्नि में न जलने का वरदान प्राप्त था। योजना के अनुसार, होलिका प्रह्लाद को गोद में लेकर जलती हुई अग्नि में बैठ गई, ताकि प्रह्लाद का अंत हो जाए। लेकिन भगवान विष्णु की कृपा से होलिका स्वयं जलकर भस्म हो गई, जबकि प्रह्लाद सकुशल अग्नि से बाहर आ गया। इसी घटना की याद में हर वर्ष होलिका दहन किया जाता है।
होलिका दहन का महत्व
होलिका दहन केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि आध्यात्मिक और सांस्कृतिक रूप से भी महत्वपूर्ण है। यह हमें सिखाता है कि सच्चाई और भक्ति के मार्ग पर चलने वालों को कोई पराजित नहीं कर सकता। यह त्योहार हमें बुराइयों को त्यागकर जीवन में सकारात्मकता और प्रेम को अपनाने की प्रेरणा देता है।