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दिल्ली मे चल रहा पांच दिवसीय महोत्सव के तहत नाटक कुच्ची का कानून का जबरदस्त मंचन किया गया l
प्रदेश की चर्चित नाट्य संस्था प्रवीण सांस्कृतिक मंच की ओर से इस वर्ष पहली बार प्रवीण स्मृति नाट्य महोत्सव दिल्ली के श्री राम सेंटर मनाया जा रहा है l
दिसंबर के प्रथम सप्ताह में दिल्ली वासियों को पूर्वांचल की नाट्यकला व सांस्कृतिक धरोहरों की छठा देखने को मिल रहा है। 7 दिसंबर शनिवार के शाम शिवमूर्ति लिखित नाटक कुच्ची का कानून, दर्शकों से खचाखच भरे प्रेच्छागृह् मे प्रस्तुत की गई l
पांच दिवसीय प्रवीण स्मृति नाट्य महोत्सव के दूसरे दिन शनिवार को कुच्ची का कानून का मंचन किया गया l यह शिवमूर्ति की लिखी कहानी है,। जिसका नाट्य रुपांतरण अभिजीत चक्रवर्ती ने किया। नाटक का निर्देशन बिज्येंद्र कुमार टांक ने किया। इस नाटक में कुच्ची लोगों से कहती है, मेरा कहना है कि कोख देकर ब्रह्ना ने औरतों को फंसा दिया। अपनी बला उनके सिर डाल दी। अगर दुनिया की सारी औरतें अपनी कोख वापस कर दे तो क्या ब्रह्ला के वश का है कि वे जब मेरे हाथ-पैर, आंख, कान पर मेरा हक है, इनपर मेरी मर्जी चलती है, तो मेरी कोख पर किसका हक होगा? उसपर किसकी मर्जी चलेगी? इन सवालों के साथ महिलाओं की स्वतंत्रता और हक के हनन के खिलाफ एक आवाज उठाती है कुच्ची।
भारतीय समाज प्राचीन काल से ही पुरुषसत्तात्मक रहा है। इसमें महिलाओं की स्वतंत्रता, अभिव्यक्ति व संवेदना का कोई महत्व नहीं रहा है। उन्हें मात्र एक वस्तु के रूप में प्रयोग करने की सामग्री समझा गया है। कुच्ची विधवा होते हुए बिना दूसरा विवाह किए गर्भ धारण करती है जो समाज के पुरुष मानसिकता को नागवार गुजरता है। प्राचीन काल से बस इसी मानसिकता के डर से कई बच्चे मारे जाते एवं गिराए जाते रहे हैं, जिन्हें समाज नाजायज समझता है पर कुच्ची अपने बच्चे को पैदा करने के लिए अपनी पूरी ऊर्जा से सारे समाज के सामने खड़ी हो जाती है…. और कहती है सीता की माई डर गई, अंजनी की माई डर गई पर बालकिशन की माई नहीं डरने वाली। मेरा बालकिशन पैदा होकर रहेगा लेकिन क्या किसी एक महिला की हिम्मत से पितृ सत्तात्मक मानसिकता बदल सकती है? इस प्रस्तुति को मंच पर कलाकारों ने जीवंत दर्शाया।
निर्देशकीय पक्ष नाटक की हर पहलू को उभारने में कामयाब रहा। नाटक के समापन पर मुख्य अतिथि के रूप में मौजूद संगीत नाट्य अकादमी,दिल्ली के संयुक्त सचिव सुमन कुमार ने सहराना करते हुए कहा जो सवाल आज हर किसी के मन मे है उसे आज इस मंच से एक बार फिर दोहराया गया है l