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पटना, 27 मार्च 2025: रंगमंच एक ऐसा माध्यम है जो न केवल मनोरंजन प्रदान करता है, बल्कि समाज में जागरूकता और विचारों का आदान-प्रदान भी करता है। 27 मार्च को हर साल ‘विश्व रंगमंच दिवस’ (World Theatre Day) मनाया जाता है, जिसे 1961 में इंटरनेशनल थिएटर इंस्टीट्यूट (ITI) द्वारा स्थापित किया गया था। इस अवसर पर दुनियाभर में थिएटर से जुड़े कलाकार, निर्देशक और रंगकर्मी इसे अपने अंदाज में मनाते हैं।
पटना का रंगमंच एक समृद्ध ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा है। बिहार की राजधानी पटना में वर्षों से रंगमंच की जीवंत परंपरा रही है। यहाँ का कालिदास रंगालय, प्रेमचंद रंगशाला, रविंद्र भवन और भारतीय नाट्य कला मंदिर जैसे मंच न केवल स्थानीय कलाकारों के लिए बल्कि राष्ट्रीय स्तर के नाटकों के लिए भी महत्वपूर्ण केंद्र रहे हैं।
कालिदास रंगालय, जिसे पटना थिएटर का हृदय कहा जाता है, कई प्रतिष्ठित नाटकों और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का गवाह रहा है। 20वीं सदी से ही यह मंच कलाकारों को अपनी कला प्रदर्शित करने का अवसर देता आया है। वहीं, प्रेमचंद रंगशाला अपने विविध प्रयोगात्मक नाटकों और युवा रंगकर्मियों को मंच देने के लिए प्रसिद्ध है।
हालांकि आधुनिक दौर में डिजिटल और सोशल मीडिया की बढ़ती लोकप्रियता के कारण रंगमंच को चुनौतियों का सामना करना पड़ा है, लेकिन पटना में आज भी थिएटर कला को जीवित रखने के लिए कई समूह और संस्थाएँ काम कर रही हैं। युवानीति, नटमंडप, रंगसंगम, अभिव्यक्ति जैसे थिएटर ग्रुप पटना में लगातार नाट्य मंचन कर रहे हैं।
रंगमंच में सामाजिक मुद्दों को प्रमुखता से उठाने का रुझान बढ़ा है। बाल श्रम, महिला सशक्तिकरण, जल संरक्षण, भ्रष्टाचार और पर्यावरण संरक्षण जैसे विषयों पर आधारित नाटकों का मंचन हो रहा है, जो दर्शकों को न केवल मनोरंजन देता है बल्कि उन्हें जागरूक भी करता है।
विश्व रंगमंच दिवस 2025 के अवसर पर पटना के विभिन्न थिएटरों में विशेष कार्यक्रम आयोजित किए गए। कालिदास रंगालय और प्रेमचंद रंगशाला में स्थानीय थिएटर ग्रुप द्वारा नाट्य मंचन किया गया, जिसमें क्लासिकल, समकालीन और सामाजिक मुद्दों पर आधारित नाटकों की प्रस्तुति दी गई।
इस मौके पर वरिष्ठ रंगकर्मियों और निर्देशकों ने पटना में रंगमंच की दशा-दिशा पर विचार विमर्श किया और थिएटर को प्रोत्साहित करने के तरीकों पर चर्चा की। साथ ही, युवा कलाकारों को प्रशिक्षित करने और थिएटर में तकनीकी सुधार लाने के लिए भी योजनाएँ बनाई गईं।
पटना में रंगमंच को पुनर्जीवित करने के लिए सरकारी और निजी संस्थानों से सहयोग की आवश्यकता है। थिएटर के लिए अनुदान, नये कलाकारों को प्रशिक्षण और रंगशालाओं के आधुनिकीकरण से इस कला को और बढ़ावा मिल सकता है।
हालांकि डिजिटल युग में थिएटर को कड़ी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ रहा है, लेकिन रंगमंच की जीवंतता और प्रभावशीलता इसे अनोखा बनाती है। पटना के रंगमंच प्रेमी और कलाकार इस कला को जीवित रखने के लिए प्रतिबद्ध हैं और आने वाले वर्षों में इसे और अधिक समृद्ध बनाने का प्रयास कर रहे हैं।
विश्व रंगमंच दिवस के अवसर पर, पटना थिएटर के इस गौरवशाली सफर को सलाम!
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