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पटना, 21 जनवरी, 2025: बिहार विधान मंडल के विस्तारित भवन में आयोजित 85वें अखिल भारतीय पीठासीन अधिकारियों के सम्मेलन के समापन समारोह में राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खां ने भारतीय संविधान की गौरवशाली विरासत और इसकी गहरी जड़ों को रेखांकित किया। राज्यपाल ने अपने संबोधन में कहा कि भारत का संविधान केवल एक विधिक दस्तावेज नहीं है, बल्कि यह हमारे राष्ट्रीय आदर्शों, सपनों और उद्देश्यों का प्रतीक है।
राज्यपाल ने कहा, “भारत का संविधान हमारे प्राचीन मूल्यों और आदर्शों को प्रतिबिंबित करता है। यह हमारे देश की संस्कृति और परंपरा का आधार है। दुनिया की प्राचीन संस्कृतियों में भारत की संस्कृति ही ऐसी है, जहाँ हजारों वर्षों से चले आ रहे मूल्य और आदर्श आज भी प्रासंगिक हैं।”
राज्यपाल ने बिहार की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विरासत को गर्व से रेखांकित करते हुए कहा कि बिहार की धरती भगवान बुद्ध, भगवान महावीर और गुरु गोबिंद सिंह जैसी आध्यात्मिक धाराओं से सिंचित है। यह अनेक मनीषियों की जन्मभूमि और कर्मभूमि रही है। नालंदा, विक्रमशिला और ओदंतपुरी जैसे विश्वविख्यात शिक्षा केंद्रों ने ज्ञान और परंपरा की महान धारा को स्थापित किया।
उन्होंने कहा कि बिहार का वैशाली गणराज्य लोकतंत्र का प्रारंभिक उदाहरण है। “छठी शताब्दी ईसा पूर्व में, जब दुनिया भर में वंश-आधारित राजतंत्र अपने चरम पर था, तब वैशाली गणराज्य ने लोकतंत्र की नींव रखी। यहाँ की शासन व्यवस्था सामूहिक निर्णय पर आधारित थी, जिसे आज की पंचायती राज व्यवस्था का पूर्वज माना जा सकता है।”
राज्यपाल ने भारत के संविधान निर्माण में बिहार की विभूतियों के योगदान को भी रेखांकित किया। उन्होंने कहा, “संविधान सभा के पहले अध्यक्ष डॉ. सच्चिदानंद सिन्हा और स्थायी अध्यक्ष डॉ. राजेंद्र प्रसाद बिहार के ही थे। इनके साथ-साथ अनुग्रह नारायण सिन्हा, श्रीकृष्ण सिन्हा, बाबू जगजीवन राम और कई अन्य महान नेताओं ने संविधान निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान दिया।”
राज्यपाल ने बताया कि संविधान सभा ने 2 साल, 11 महीने और 18 दिनों के कठिन परिश्रम के बाद भारतीय संविधान को तैयार किया। “संविधान केवल कानूनों का समूह नहीं है, यह हमारे राष्ट्रीय मूल्यों, लोकतांत्रिक परंपराओं और मानवता के आदर्शों का प्रतीक है।”
राज्यपाल ने संविधान की 75वीं वर्षगांठ को लोकतांत्रिक उपलब्धियों का उत्सव बताते हुए कहा कि यह हमारी संवैधानिक परंपराओं की ओर ध्यान आकर्षित करने का समय है। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 2047 तक भारत को पूर्ण रूप से विकसित राष्ट्र बनाने के संकल्प का उल्लेख करते हुए कहा कि इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए संविधान के आदर्श हमारे मार्गदर्शक होंगे।
राज्यपाल ने भारतीय दर्शन और मानवता की एकता के महत्व पर जोर दिया। उन्होंने कहा, “आदि शंकराचार्य ने चारों दिशाओं में मठों की स्थापना कर देश की आध्यात्मिक और सांस्कृतिक एकता को मजबूत किया। इन मठों से जुड़े महावाक्य मानवता की एकता और समता को दर्शाते हैं। यह भारत का अद्वितीय आदर्श है।”
उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति ज्ञान और मानवता की संस्कृति है। “हमारी संस्कृति आत्मा से परिभाषित होती है, जो नूतन है और कभी पुरानी नहीं होती। यही हमारी परंपरा की विशेषता है।”
राज्यपाल ने पीठासीन अधिकारियों की भूमिका की प्रशंसा करते हुए कहा कि वे लोकतांत्रिक संस्थाओं की प्रतिष्ठा के संरक्षक हैं। उन्होंने कहा, “लोकतांत्रिक संस्थाओं की गरिमा और उनकी स्वतंत्रता बनाए रखना हमारी जिम्मेदारी है। इन संस्थाओं पर कोई भी हमला, हमारे लोकतंत्र पर हमला है।”
राज्यपाल ने गीता के श्लोक और महात्मा गांधी के आदर्शों का उल्लेख करते हुए कहा, “महात्मा गांधी ने समाज के अंतिम व्यक्ति के हित को प्राथमिकता दी। यह भारतीय राजनीति और समाज का आदर्श है। हमें अपने फैसले समाज के हित को ध्यान में रखकर लेने चाहिए।”
उन्होंने रामायण के एक प्रसंग का जिक्र करते हुए कहा कि भगवान राम ने माता सीता का त्याग लोक आराधना के लिए किया। “यही भारत का आदर्श है, जहाँ व्यक्तिगत हितों से ऊपर समाज और मानवता के हित को रखा जाता है।”
राज्यपाल ने कहा कि भारत का संविधान केवल विधिक प्रावधानों का दस्तावेज नहीं है, यह हमें प्रेरणा और ऊर्जा प्रदान करता है। “यह हमारे राष्ट्र को मार्गदर्शन देने वाला प्रकाशस्तंभ है। जब हम बड़े लक्ष्य निर्धारित करते हैं, तो हमें प्रेरणा और उत्साह के स्रोत की आवश्यकता होती है। हमारे संविधान में वह शक्ति है जो हमें आगे बढ़ने की दिशा दिखाती है।”
राज्यपाल ने भारतीय राजनीति के दृष्टिकोण को पश्चिमी परिभाषा से अलग बताते हुए कहा कि “भारतीय संस्कृति में राजनीति का अर्थ है कि हम बड़े से बड़ा त्याग करने के लिए तैयार रहें और ज्ञान व अच्छे संस्कार प्राप्त करने की कोशिश करें। यह भारतीय राजनीति और समाज की विशिष्टता है।”
अपने संबोधन के अंत में राज्यपाल ने कहा कि भारतीय संविधान और इसके आदर्श हमारे प्राचीन मूल्यों और परंपराओं का प्रतिबिंब हैं। “यह केवल एक दस्तावेज नहीं, बल्कि हमारे राष्ट्र की आत्मा है। हमें इसे संरक्षित और समृद्ध करना होगा ताकि भारत 2047 तक दुनिया के अग्रणी देशों में शामिल हो सके।”
राज्यपाल के इस प्रेरणादायक संबोधन ने सम्मेलन में उपस्थित सभी गणमान्य व्यक्तियों को गहराई से प्रभावित किया।
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