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पाटलिपुत्र नाट्य महोत्सव में आज दो नाटकों की प्रस्तुति हुई, जिसमें पहली प्रस्तुति “द फैक्ट आर्ट एंड कल्चरल सोसाइटी” बेगूसराय (बिहार) की प्रस्तुति कथा
नाटककार : सुधांशु फिरदौस
परिकल्पना व निर्देशन: प्रवीण कुमार गुजन.
कथासार
जबसे मनुष्य का इतिहास है, कथा का इतिहास है। मानव सभ्यता के आरंभ से ही कथा सुनने-सुनाने पर बहुत जोर रहा है।
इस देश में कथा सुनाने वालों की एक लंबी परम्परा रही है, जो घूम-घूम कर कथा बाँच कर ही अपना जीवन चलाते रहे हैं। नाटक “कथा” ऐसे ही कथावाचकों की बातचीत से सम्भव हुई। कथा की व्यथा है, जिसमें काधिक लोचन व गुडिया की कहानी के माध्यम से प्रेम और पानी को बचाने की बात कहते हैं। काथिकों को लगता है कि संसार बचाने के लिये प्रेम व पानी को बचाने की जरूरत है। आज हर तरफ प्रेम और पानी दोनों का अकाल पड़ गया है। नाटक, सभ्यता की शुरुआत की किसी बड़ी घटना से रोजमर्रा की किसी साधारण घटना को एक सूत्र में जोड़ कर अपनी बात को रखने का प्रयास करता है। नाटक अपने कथा सूत्र में बार-बार इस बात को सामने लाती है कि जो कोमल है, जो भी नाजुक है, उसे समय की क्रूरता या तो मार देगी और अगर वह बचा रहा तो कम से कम अपनी ही तरह क्रूर अवश्य बना देगी।
मंच पर
प्रिया कुमारी, आयशा सिंह यादव, यैमय कुमार, चन्दन कुमार वत्स, अंकित शर्मा, देवानंद सिंह, कमलेश ओझा, चन्दन कुमार, मो. रहमान, जीतेन्द्र कुमार, दीपक कुमार ।
नेपथ्य: मंच परिकल्पना कुमार अभिजीत, प्रकाश परिकल्पना चिंटू कुमार, बस्त्र विन्यास पूजा कुमारी रिमझिम कुमारी, ध्वनिः खुशबू कुमारी, संगीत निर्देशन अमरेश कुमार / दीपक कुमार, संगीत गायन / वाद्य यंत्रः दीपक कुमार, रावेकात कुमार, लाल बाबू कुमार, रूपसज्जा नंदन कुमार सिंह, मंच प्रबंधन प्रभात कुमार ।
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पाटलिपुत्र नाट्य महोत्सव के जबरदस्त आगाज के बाद आज दूसर दिन नुक्कड़ मंच पर लक्की जी गुप्ता (जम्मू कश्मीर) द्वारा लिखित निर्देशित एवं अभिनीत नाटक मां मुझे टैगोर बना दो एवं दूसरी प्रस्तुति आशा रिप्रेटरी, पटना की ओक्का बोक्का का मंचन हुआ।
मुख्य मंच पर पाटलिपुत्र अवार्ड 2024 से डॉ योगेंद्र चौबे, खैरागढ़ (छत्तीसगढ़) एवं श्री अनिल कुमार रस्तोगी, लखनऊ (उत्तर प्रदेश) को सम्मानित किया गया।
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आज की दूसरी प्रस्तुति भाव राग ताल नाट्य अकादेमी, पिथौरागढ़ (उत्तराखण्ड) की
माधो सिंह भण्डारी (हिन्दी)
नाटककार डॉ. अनिल कार्की
परिकल्पना व निर्देशन: कैलाश कुमार
कथासार
दुश्मन राजा के सेनापति को मार गिराने की चचाँ चारों ओर फैली हुई है। चबूतरे पर बैठे मागों को ग्रामीण घेर लेते हैं। ग्रामीण आपस में उसकी वीरता की बातें करते हैं तथा एक साथ सिंह माधो सिंह के नारे लगाते हैं। माधो सिंह को मलेथा के सूखे, प्यासे होने का दुख बताकर चला जाता है। माधो सिंह की मामी भी माधो को मलेथा का दुःख बताती है। तत्पश्चात माधो उस बुजुर्ग व्यक्ति व मामी की बातों से दुखी होकर राजा से पानी माँगने दिहरी चल देता है जहाँ राजा का मंत्री व राजा मापो की खिल्ली उडाते हैं और उसकी बातों को अनसुना कर देते हैं। सारे ग्रामीण उसका साथ देते हैं और पहाड़ खोदने सब एकजुट होकर चल पड़ते हैं। इसी बीच माधो सिंह अपने बेटे को खो देता है। ग्रामीणों के हौसले टूट जाते हैं पर माधो सिंह दृढ संकल्प के साथ आगे बढ़ता है।
सभी ग्रामीण उसके साथ एक बार फिर आगे बढ़ते हैं। आखिरकार मेहनत रंग लाती है और सूखे मलेथा में पानी लाने का संकल्प पूरा हो जाता है। उत्तराखण्ड में वीर माधो सिंह भड़ (भण्डारी) ने अपनी वीरता से गढ़वाल से कत्युरों तक अपनी वीरता का परचम लहराया था। उन्होंने युद्ध कर कत्युर राजाओं को हराया था। वे सोहलवीं सदी के इंजीनियर माने जाते हैं, जिन्होंने बिना किसी संसाधन के गांव वालों को एकत्रित कर पहाड खोदकर नदी चंद्रभागा के पानी को अपने गांव तक मूल (नहर) के रूप में पहुंचाया। माधो सिंह भण्डारी ने अपने वीर पुत्र गजे सिंह का बलिदान देकर नदी चंद्रभागा के पानी को गाँव तक पहुंचाया था। पुत्र के बलिदान व उसके साहसिक कार्य से नाधो सिंह आज तक लोगों के मन में बसे हुए है। माधो सिंह के समर्पण के कारण आज भी गढ़वाल के मलेथा गांव में उनके नाम पर एगास (मेला) लगता है और उत्सव मनाया जाता है।
मंच पर
माधोसिंह रोहित यादव, सूत्रधार 1 चीरज कुमार, उददीन सपना, भाभी प्रीति रावत, मंत्री दीपक गडल, चौतू: जितेंद्र घागी, सूत्रधार 2 डिगर राम् ग्रामीण सिमरन, आरती। नेपथ्य: संगीत: चीरज कुमार, हरमोनियम: दिनेश कुमार, ढोलक शुभम कुमार, परकशन कैलाश कुमार, बांसुरी रविशकर ।