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By Rahul ranjan
मुंगेर। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधाएं पहुंचाने के उद्देश्य से शुरू की गई “ई-औषधि वाहन” सेवा की जमीनी हकीकत अब सवालों के घेरे में है। मुंगेर से आई एक चौंकाने वाली तस्वीर ने राज्य सरकार की इस महत्वाकांक्षी योजना की पोल खोल दी है। तस्वीर में स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है कि जिस वाहन का उपयोग ग्रामीण क्षेत्रों में बीमार लोगों को दवा पहुंचाने के लिए होना चाहिए था, उसी वाहन का उपयोग अब सूखा चारा ढोने में किया जा रहा है।
यह तस्वीर एक जागरूक नागरिक ने दैनिक भास्कर को भेजी है। वाहन के ऊपर ‘ई-औषधि’ लिखा हुआ साफ देखा जा सकता है, और साथ ही वाहन पर राज्य के तीन बड़े नेताओं की तस्वीरें भी छपी हैं, जिनमें भारतीय जनता पार्टी का राजनीतिक वर्चस्व साफ झलकता है। इस वाहन का इस्तेमाल चारे की ढुलाई में किया जाना न केवल प्रशासनिक लापरवाही को उजागर करता है, बल्कि यह राज्य की स्वास्थ्य सेवाओं की गंभीर स्थिति पर भी सवाल उठाता है।
“ई-औषधि” योजना का उद्देश्य हर प्रखंड स्तर पर स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच को बेहतर बनाना था। इस योजना के तहत विशेष मोबाइल यूनिट के माध्यम से ग्रामीण इलाकों में दवाएं, जांच सुविधाएं और प्राथमिक उपचार उपलब्ध कराने का दावा किया गया था। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने स्वयं इस सेवा की शुरुआत करते हुए कहा था कि इससे ग्रामीणों को अस्पतालों तक बार-बार जाने की जरूरत नहीं पड़ेगी और वे अपने गांव में ही बुनियादी स्वास्थ्य सेवाएं पा सकेंगे।
लेकिन मुंगेर की यह तस्वीर इन दावों की सच्चाई को कठघरे में खड़ा करती है। जिस वाहन को दवाओं के परिवहन और मरीजों की सेवा के लिए इस्तेमाल होना चाहिए, उसका उपयोग अब कृषि कार्यों में हो रहा है। यह न केवल स्वास्थ्य विभाग की लापरवाही को दर्शाता है, बल्कि इससे यह भी प्रतीत होता है कि योजनाएं केवल कागजों पर सजी हैं और धरातल पर उनकी क्रियान्वयन में गंभीर खामियां हैं।
स्थानीय लोगों का कहना है कि मुंगेर का स्वास्थ्य विभाग केवल बैठकों और योजनाओं के दस्तावेजों में सक्रिय नजर आता है, जबकि जमीनी स्तर पर सेवा लगभग शून्य है। अधिकारियों की उदासीनता और जवाबदेही की कमी साफ तौर पर देखी जा सकती है।
इस पूरे मामले पर अभी तक प्रशासन की ओर से कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है, लेकिन तस्वीर के सामने आने के बाद निश्चित ही यह मामला सुर्खियों में आ गया है। अब देखना यह होगा कि राज्य सरकार इस लापरवाही पर क्या कदम उठाती है और स्वास्थ्य सेवाओं को पटरी पर लाने के लिए कौन-से ठोस उपाय किए जाते हैं।
यह घटना न केवल एक योजनाबद्ध सेवा की विफलता को उजागर करती है, बल्कि यह भी बताती है कि सरकारी संसाधनों का दुरुपयोग किस हद तक हो रहा है। साथ ही यह लालू यादव के चर्चित “चारा घोटाले” की याद भी ताजा कर देती है, जिसने एक समय बिहार की राजनीति में भूचाल ला दिया था।
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