फोगसी पीपीएच कॉनक्लेव में प्रसव के बाद रक्तस्राव पर चर्चा ।


पटना ऑब्स गायनी सोसायटी द्वारा ‘फोगसी पीपीएच का कॉनक्लेव ‘३०-३१ मार्च को संपन्न हुआ। इस सम्मेलन की प्रेसिडेंट डॉ मीना सामन्त ने बताया कि यह सम्मेलन मुख्य रूप से प्रसव के बाद होने वाले रक्तस्राव ( पीपीएच ) पर आयोजित किया गया है । प्रसव के बाद १-६% महिलाओं में गंभीर रूप से रक्तस्राव की संभावना रहती है जिससे महिला की मृत्यु भी हो सकती है । पीपीएच का मुख्य दो कारण होते हैं-बच्चेदानी का न सिकुड़ना या प्रजनन अंगों का क्षतिग्रस्त हो जाना । सेक्रेटरी डॉ अमिता सिंहा ने कहा-
आपात क़ालीन सुविधाओं द्वारा एवं आधुनिक मेडिकल एवं सर्जिकल तकनीकियों द्वारा इस समस्या से बहुत हद तक बचा जा सकता है।

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इस सम्मेलन के उद्घाटन मे फोगसी प्रेसिडेंट डॉ जयदीप टैंक मुख्य अतिथि, पूर्व प्रेसिडेंट डॉ ऋषिकेश पाई एवं माग्रेट गवाडा ( यूनीसेफ) विशिष्ट अतिथि और जन्मेजया मोहापात्रा विशेष अतिथि थे।
साइंटिफिक अध्यक्ष डॉ उषा डिडवानिया ने बताया कि देश भर से आये प्रतिष्ठित एवं कुशल चिकित्सकों ने पीपीएच के विभिन्न पहलुओं एवं प्रबंधन की तकनीकियों पर विस्तार से चर्चा की।लगभग ५०० स्त्री-रोग विशेषज्ञों को विशेष जानकारी प्राप्त करने का अवसर मिला।


३० मार्च को लाइव एवं हैंड-ओन कार्यशाला का आयोजन किया गया एवं ३१ मार्च को सी एम ई का आयोजन किया गया ।
इस सम्मेलन में सम्मानित राष्ट्रीय संकाय डॉ भास्कर पाल ने मेडिकल मेनेजमेंट के बारे में बताया । डॉ माधुरी पटेल ने सर्जिकल मैनेजमेंट यानी ‘ कम्प्रेसन सुचर्स ‘के बारे में चर्चा की जिसमें बच्चेदानी की अगली एवं पिछली दीवारों को टाँकों द्वारा विभिन्न तरीक़ों से सटाकर रक्तस्राव को रोका जा सकता है । डॉ महेश गुप्ता ने बच्चेदानी को सप्लाई करने वाली धमनियों को बॉंधने की विधियाँ बतायीं ।

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डॉ प्रीति कुमार ने ‘इ-मोटिव बंडल अप्रोच ‘
डॉ अब्दुल्ला मोसा(मिश्र) ने बच्चेदानी बचाने के तरीक़ों एवं डॉ अल्का कृपलानी ने ज़रूरत पड़ने पर हिस्टरेक्टॉमी की विधियों पर प्रकाश डाला।
प्रेस मीडिया की अध्यक्ष डॉ पूनम लाल ने बताया कि कार्यशाला का मुख्य आकर्षण ‘’ छत्तीसगढ़ बलून टेम्पोनाड ‘ रहा जिसमें बच्चेदानी के अंदर बलून को फुलाकर उसकी दीवार पर प्रेसर डालकर रक्तस्राव को रोका जा सकता है । यह गाँव में भी कारगर सिद्ध हो सकता है ।

नर्सें भी इससे सीख सकती है ।
कार्यशाला अध्यक्ष डॉ विनीता सिंह ने बताया कि ‘इन्टरनल आइलक लाइगेशन’ में बच्चेदानी की मुख्य धमनी को बाँध कर रक्तस्राव रोका जाता है जिसके लिए प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है । इस कार्यशाला में डॉक्टरों को प्रशिक्षित किया गया ।


डॉ प्रज्ञा मिश्रा चौधरी ने उद्घाटन , डॉ रेणु रहोतगी ने सांस्कृतिक कार्यक्रम का सफलतापूर्वक संचालन किया । डॉ रंजना सिंहा एवं मिनी आनंद ने ज्वाइंट सेक्रेटरी की अहम् भूमिका निभाई ।

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