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तीन दिवसीय मनेजर साहब की स्मृति नाट्य मोहत्सव का उद्घाटन 12 मार्च, मंगलवार की संध्या प्रेमचंद रंगशाला में हुआ। बाह्य मंच पर रंग संगीत की प्रस्तुति और मुख्य मंच पर शरद शर्मा द्वारा निर्देशित नाटक ‘संभ्रांत वैश्य’ का मंचन हुआ।
कहते हैं नाटक समाज का आईना होता है और इस आईने में जब भी मौक़ा मिले हमे ख़ुद को देखना चाहिए इसी उद्देश्य को पूरा करने के लिए दी आर्ट मेकर रंगमंडल परिवार इस साल भी बेहतरीन नाट्य प्रस्तुतियों के साथ अपने राष्ट्रीय नाट्य महोत्सव का आगाज़ किया।
कथासार
ज्यों पॉल सार्त्र द्वारा लिखित और शरद शर्मा द्वारा निर्देशित नाटक ‘संभ्रांत वैश्य’ के माध्यम से न केवल गौरों की धूर्तता के शिकार एक हब्शी की पीड़ा को व्यक्त किया है, बल्कि इसके माध्यम से नस्लभेदी व्यवस्था पर गहरी चोट की है। अभिनव रंगमंडल, उज्जैन (म.प्र.) के अभिनेताओं के अद्भुत प्रस्तुति ने दर्शकों का मन मोह लिया। नाटक में दर्शाया गया है कि समाज का ऊंचा तबका अच्छे बुरे, सही-गलत का निर्णय मानवीय विवेक के आधार पर लेने के बजाय जाति, नस्ल, भाषा, धर्म आदि के पूर्वाग्रहों से ग्रस्त होकर लेता है। ऐसे में हर बार समाज का निचला तबका ऊपरी तबके की चालाकियों की मार झेलने पर मजबूर होता है। यह नाटक भारतीय समाज में व्याप्त विसंगतियों पर भी गहरी चोट करता है, क्योंकि हमारे समाज की राजनीति भी इन्हीं सारे भेदों को रेखांकित करती है ।
पात्र परिचय
लिज़्ज़ी – कामना भट्ट,
फ्रेद – भूषण जैन
हब्शी – अंकित दास
जाँ – सचिन वर्मा
जेम्स – रूबल शर्मा
सीनेटर – जगरूप सिंह चौहान
आदमी-1 – शैशव भटनागर
आदमी-2- अनिरुदध शर्मा
महिला-3 – मोनिका शर्मा/यास्मीन सिद्दीकी
मंच परे
अजय गोस्वामी- मंच प्रबंधक
विशाल मेहता – मंच आकल्पक
वेशभूषा – सुधा शर्मा/ कामना भट्ट विशाल मेहता/बहादुर –
मंच निर्माण- भूषण जैन
संगीत संचालन – संभव करकर