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कथासार
“आँख का नशा” आगा हश्र कश्मीरी लिखित पारसी नाटक है, जो मानव समाज में प्रचलित अवगुणों को सरल दृश्यों, दमदार संवादों और मर्मस्पर्शी गीतों द्वारा दर्शकों के समक्ष पेश करता है। कथाक्रम में जुगल वैश्या कामलता के जाल में फंसकर अपनी पतिव्रता पत्नी सरोजनी को त्याग देता है। जुगल का चचेरा भाई माधो अपने भाई को वैश्याओं से बचाने के लिए भरपुर कोशिश करता है, जो की नाकाम रहता है। सरोजिनी की पड़ोसन दुलारी उसके घर पर काम करने लगती है और तांत्रिक से मिलाने के बहाने उसे कामलता के पुराने आशिक बेनी के पास ले जाती है। माधो सरोजनी की लाज बचाता है। इधर जब जुगल सारी धन संपत्ति कामलता पर लुटा देता है, तो वो बेनी को जुगल के खिलाफ उकसाती है। जुगल और बेनी में झगड़ा होता है। बेनी की चलाई गोली जुगल की जगह कामलता को लगती है। बेनी पुलिस को अपने साथ मिलाकर जुगल को दोषी बताता है। माधो के सहयोग से जुगल भाग जाता है और भिखारियों की तरह जीवन बिताने लगता है। कामलता के द्वारा बेनी को एक बेटी कामिनी पैदा होती है, जिसे मृत बताकर कामलता का उस्ताद सदारंग बाजार में बिठा देता है। जब बेनी को इस बात का पता चलता है तो वो सदारंग और कामिनी को भी मार देता है। इधर वर्षों के बाद जुगल वापस लौटता है और सरोजनी से मिलता है। सूदखोर कुंदन लाल उसे पकड़ने को पुलिस बुलाता है लेकिन बेनी आकर अपना अपराध स्वीकार कर लेता है और नाटक का सुखांत होता है।
पात्र-परिचय
मंच पर
जुगल किशोर-प्रिंस राज
सरोजनी-स्वाती शर्मा
माधो – सुदर्शन शर्मा
बेनी प्रसाद-विशाल कुमार
राज कुँवर-काजल राज
कामलता-रेखा सिंह
कामिनी-प्रियंका कुमारी
सदारंग-करण कुमार
नीलकंठ- सत्यम कुमार
कुंदन लाल-नील केतु
दारोगा-सिंघम यादव
सिपाही-शशी कुमार, शंभु देव
मुस्कान कुमारी, नेहा कुमारी, सत्यम कुमार, करण कुमार, विवेक कुमार, रोहित कुमार, शंभु देव, उत्तम भट्ट, राजन मंडल, नीरज कुमार विश्वजीत, अस्तीत्व रंजन।
मंच परे
हारमोनियम-रोहित चंद्रा, चंदन उगना
नगाड़ा- प्रेम पंडित
ढोलक- गौरव पांडेय
संगीत संयोजन- गोपी कुमार
गायन मंडली- राहुल कुमार राज,रोहित चंद्रा,शब्दा हज्जू,चंदन उगना
संगीत परिकल्पना- राजू मिश्रा
प्रकाश परिकल्पना- स्पर्श मिश्रा
सह निर्देशन –
राहुल कुमार राज, शब्दा हज्जु
परिकल्पना एवं निर्देशनः-
सुरेश कुमार हज्जु