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कला जागरण और मगध कलाकार द्वारा आयोजित डा.चतुर्भुज स्मृति 15वां ऐतिहासिक नाट्य महोत्सव में दूसरे दिन गगन दमामा बाज्यो नाटक का मंचन किया गया| दी स्ट्रगलर्स, पटना की प्रस्तुति, पीयूष मिश्रा लिखित एवं रौशन कुमार निर्देशित
इस नाटक में मंच पर भगत सिंह- सागर सिंह,सुखदेव थापर- उत्तम कुमार,राजगुरु – राहुल कुमार,मार्कण्ड त्रिवेदी- रोशन कुमार,बटुकेश्वर दत्त/अशफक्कुल्लाह खान/जयदेव- प्रिंस कुमार,औरत एवं सोहनी- मौसमी भारती, भगवती भाई – आदर्श रंजन, किशन सिंह/खान बहादुर अब्दुल अज़ीज़- सरबिन्द कुमार, शिव वर्मा – राहुल कुमार रवि, चंद्रशेखर आज़ाद/ सरकारी वकील- मृगांक कुमार, बच्चा- कियारा एंजेल, फनींद्रनाथ – रंजन ठाकुर, यतीन्द्रनाथ/दुन्नी चंद/दौलतराम/ यशपाल/जयगोपाल – गोपी कुमार, मुईन :- रौशन कुमार, राम प्रसाद बिस्मिल/जज कोल्ड स्ट्रीम/ललित मोहन बनर्जी :- मो.दानिश, हवलदार – मुकेश कुमार ने अभिनय किया| पार्श्व से जितेंद्र कुमार जीतू(रूप सज्जा), सुनील विश्वकर्मा(सेट निर्माण), रोहित चंद्रा(संगीत परिकल्पना), मो.आसिफ(हारमोनियम), अभिषेक राज(ढोलक/तबला/ ड्रम), रवि वर्मा(प्रकाश परिकल्पना), श्वेता कुमारी, सौम्या भारती(वस्त्र विन्यास), रमेश कुमार रघु (रंग वस्तु), मुकेश कुमार(नेपथ्यकर्मी) ने सहयोग किया|
नाटक गगन दमामा बाज्यो’ गुरु ग्रन्थ साहिब की एक सूक्ति है. इसका अर्थ है, ‘तू आज से भिड़ जा, बाकी देख लेंगे. ‘नाटक गगन दमामा बाज्यो शहीद भगत सिंह के जीवन के महत्वपूर्ण क्षणों का वर्णन करता है, जलियांवाला बाग की वो खूनी बैसाखी, एक बच्चे के रूप में क्रांतिकारी विचारधारा में शामिल होने से, 1923 में लाहौर के नेशनल कॉलेज में एक युवा व्यक्ति के रूप में उस विचारधारा की खोज, पढ़ाकू भगत सिंह, खूबसूरत भगत सिंह, शान्त भगत सिंह, हंसोड़ भगत सिंह, इंटलेक्चुअल भगत सिंह, युगदृष्टा भगत सिंह, दुस्साहसी भगत सिंह और प्रेमी भगत सिंह से एक साथ हमें मिलवाता है।पीयूष मिश्रा का यह नाटक हमें भगत सिंह, राजगुरू, सुखदेव, बटुकेश्वर दत्त चन्द्रशेखर आजाद और उन जैसे असंख्य क्रांतिकारियों के देशप्रेम के जुनून से भर देता है।यह नाटक भगत सिंह की हिंसा में विश्वास रखने वाले इंसान की छवि को भी तोड़ता है. असेंबली में बम फेंकने के बाद एक जगह पीयूष, भगत सिंह से कहलवाते हैं ‘इन्सान के लिए हमारा इश्क किसी से भी कम नहीं है. इसलिए इन्सान का खून करने की ख्वाहिश रखने का तो सवाल ही नहीं उठता. हमारा एकमात्र उद्देश्य था कि एक धमाका करें, क्योंकि बहरों को सुनाने के लिए धमाकों की ही जरूरत होती है।यह नाटक आपको कुछ कर गुजरने के जज्बे से भरता है और ज्यादा कुछ न कर पा सकने की छटपटाहट से भी।
तीन दिवसीय समारोह के अंतिम दिन कल 29 फरवरी को संध्या 06:50 बजे से डा.चतुर्भुज लिखित शकुन्तला नाटक का मंचन पुण्यार्क कला निकेतन,पंडारक के कलाकार विजय कुमार के निर्देशन में करेंगे|
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