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4 फरवरी 2024 को नुक्कड़ पर एकजुट खगौल द्वारा काजोल कुमारी एवं श्यामकांत द्वारा लोक गीत एवं नुक्कड़ नाटक “ननद भौजाई” लेखक: भिखारी ठाकुर, निर्देशक :अमन कुमार।
वही कालिदास रंगालय के मुख्य मंच पर पहली प्रस्तुति एक्सपोजर, राँची की प्रस्तुति नाटक
कोर्ट मार्शल
नाटककार :स्वदेश दीपक
परिकल्पना व निर्देशन: संजय लाल
कथासार
नाटक “कोर्ट मार्शल” हमारी समकालीन व्यवस्था के प्रति तीखा आक्रोश व्यक्त करती है। प्रस्तुत नाटक में दलित चेतना बहुत उभर कर सामने आई है। नाटक में रामचंदर जो सेना का निम्नवर्गीय जवान है। वह अपने रेजीमेंट के दो अफसरों पर गोली चला देता है। जिसमें एक अपासर की मौत हो जाती है और दूसरा गंभीर रूप से घायल हो जाता है। इसी अपराध की वजह से रामचंदर का कोर्ट मार्शल किया जाता है। क्रॉस एग्जामिन के तहत यह सच्चाई सामने आती है कि रामचंदर को यह दोनों ऑफिसर बहुत प्रताड़ित और अपमानित करते थे। रामचंद्र की शिकायत के बावजूद उरो नजर अंदाज कर दिया जाता था। बार-बार इस अत्याचार से प्रताडित और अपमानित होने की वजह से अंतत रामचंदर अपना संयम, अपना आपा खो बैठता है और दोनों ऑफिसर पर गोली चल देता है। इसी तथ्य के आधार पर रामचंदर का कोर्ट मार्शल किया जाता है। कोर्ट मार्शल के दौरान यह देखने को मिलता है कि क्यों और किस परिस्थिति में रामचंदर ने गोली चलाई थी। इतना बड़ा गुनाह करने के लिए आखिर वह क्यों मजदूर हो जाता है। यह जानते हुए कि इस अपराध के लिए उसे फांसी की सजा हो सकती है। लेकिन इसके बावजूद वह गोली बला देता है. आखिर क्यों ?
मंच पर
कर्नल सूरत सिंह: रोशन प्रकाश, जज एडवोकेट: आकाक्षा चौधरी, सलाहकार जज रिया कुमारी, जज 1: शरद प्रगाकर जज 2: विक्की कुमार, मेजर पुरी उपेंद्र कुमार, कैप्टन विकास राय रतन कुमार। रामचंदरः सनी देवगन, डॉक्टर गुप्ता किरणमय महतो, कैप्टन बी डी कपूर मोहित यादव, बलवान सिंह सलीब मिज लेफ्टिनेंट कर्नल बृजेंद्र रावत सुभाष साहू, सिपाही-1 पवन साहू, सिपाही-2: हर्ष कुमार, गार्ड जगदीश कुमार नेपथ्य
प्रकाश संयोजन श्वेतांग सागर, मंच सज्जा शरद प्रभाकर वेशभूषा सुनीता लाल पार्थव संगीत अवनीश पाठक, ब्रोशर साकत प्रभाकर।
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दूसरी प्रस्तुति ड्रामाटर्जी आर्ट्स एंड कल्चरल सोसाइटी, दिल्ली की प्याज के फूल
नाटककार : प्रियम जानी
निर्देशकः सुनील चौहान/साक्षी
कथासार
एक प्रेम त्रिकोण है, पता नहीं उसमें कौन सही है और कौन गलत? इसमें कौन अपनी ज़िन्दगी अपनी मर्जी से जी पा रहा है और कौन नहीं? कौन खुशहाल है और कौन नहीं? किसका प्रेम पूर्ण है और किसका नहीं? पर प्रेम तो प्रेम है, लेकिन इसमें तीसरा कोण आये ही क्यों? एक स्त्री अपने पति के विवाहेत्तर संबंधों की पड़ताल करती वेश्यालय तक पहुँच जाती है। ज़ाहिर है, इस क्रम में वहीं उसका स्वागत तो होता नहीं है। बात बढ़ती है. लड़ाई-झगड़े की स्थिति तक पहुँचती है। सबके अपने-अपने तर्क है और कोई किसी से न सहमत है और न होना चाहता है। उन सब के लिए प्रेम के उनके अपने तर्क, व्याख्या और परिभाषा है। उनकी अपनी जरूरते भी हैं, इस हृद्ध और संघर्ष में। लेकिन प्रेम के अनेक कोण से हमारा सामना होता है। निष्कर्ष भले न निकले और निकले तो भले आपके लिए सहमत होने योग्य न हो, पर इस क्रम में स्त्री के नजरिये से पुरुष एक प्याज बन जाता है, जिसका परत दर परत उधेड़ा जाता है जो कम से कम सर्वप्रिय और सर्वस्वीकार्य तो नहीं ही है।
मंच पर
वेश्या: गौरी गुप्ता, पत्नी अंकिता, गोविन्द नो आकिंव, नर्तकी मनीषा शर्मा।
नेपच्य
संगीत: निशान्त सिंह, परिकल्पना साक्षी चौहान, प्रकाश सुनील चौहान, प्रस्तुति: अभ्युदय मिश्र ।